Monday, June 27, 2011

साढ़ू

गाम घर मे पहिलका समय मे बेसी कतहु कतहु एखनो एक अलिखित मान्यताक चलन अछि जे यदि एके गाम मे किनको विवाह भऽ गेल तऽ वो आपस मे स्वतः साढ़ू बनि जायत रहथि। एक गाम छोड़ू यदि एक तरफक रास्ता मे सासुर पड़य तखनो साढ़ू। हद तऽ तखन भेल जखन एक ट्रेन सँ सासुर गेनिहार सब एक दोसर कें साढ़ू कहि कय सम्बोधित करैत छथिन्ह।

पहिलुका समय मे गाम घरक लोक हैजा,प्लेग आदि संक्रामक बीमारी केर प्रवेश मात्रक सूचना सँ खूब डराबैत रहथि। समय सेहो कठिन छल। पुरनका लोक सब कहैत रहथिन्ह जे एकटा मुर्दा जराऽ कऽ आबिते आबिते दोसर तैयार। यानि एहि बीमारी मे बहुत लोकक मरनाय आम बात रहय ताहि दिन मे। ओहि पुरनका लोक सभहक मुँहे सुनल ई सत्य घटना आय हम लिखऽ जाऽ रहल छी।

मिथिला मे सहरसा जिलान्तर्गत चैनपुर गाम अछि। गामक लोक खूब शिक्षित, सहज आ विकासोन्मुख सेहो। चैनपुर मे मुख्यरूप सँ दू टा समानान्तर रोड पूरा गामक अगिला छोर तक एकर बिशेषता सेहो अछि। जाहि मे एक रोडक शुरूआत मे कुम्हार जातिक लोक बसल छथि। ताहि सँ सटले पंडित टोला अछि। मिथिला मे एखनो कुम्हार जातिक उपनाम (सरनेम) "पंडित" होईत अछि। बगले मे पंडित टोल जाहि मे मूर्खो आदमी केँ "पडित" कहबाक प्रचलन सेहो अछि। यानि पंडित जी के शुरूआत मे "पंडित" सम्बोधन आ कुम्हार केँ नामक अंतिम मे "पंडित"। खैर--

एक दिनक बात भोरे भोरे एक पंडित जी हाथ मे लोटा लेने बाह्य-भूमि तरफ निकलला। रास्ता मे हुनके उमरि के कुम्हार सड़के पर अपना काज मे मस्त छल।

पंडित (कुम्हार केँ सम्बोधित करैत) - की साढ़ू की हाल चाल?


कुम्हार (आश्चर्य चकित भाव सँ प्रणामक मुद्रा मे) - पंडित जी ई अपने की कहि रहल छिये? अपने ब्राहमण कुल सँ आ हम कुम्हार। तखन फेर हम अहाँ साढ़ू कोना?

पंडित - मूरखे रहि गेलऽ सब दिन?

कुम्हार - से की?

पंडित - सुनऽ। जखन किनको एक गाम मे विवाह होय छै तऽ वो एक दोसर केँ साढ़ू कहय छै कि नहि?

कुम्हार -
हाँ।

पंडित - एक ट्रेन सँ जे सासुर जाय छथि एक दोसर केँ साढ़ू कहय छै कि नहि?

कुम्हार - जी हाँ कहय छै।

पंडित - आब तूहीं बताबऽ हमर कनिया आ तोहर कनिया एके हैजा मे मरलखिन्ह तऽ हम दुनु गोटय साढ़ू भेलिये कि नहि?

Saturday, June 25, 2011

होइया कनिको लाज?

खाऽ कऽ जाऊ मचान पर खेलू बैसिकय ताश।
राति अन्हरिया की करत सोलर लेम्प प्रकाश।।

बेटा बेटी सूति गेल की कनिया केर मोल।
मस्त रहू सब छोड़िकय ट्वेन्टी नाइन बोल।।

चारि गोटय नहिये भेटल कियै करय छी रंज।
दूइ गोटय छी संग मे शुरू करू शतरंज।।

बैसलाहा कत्तेक दिना जाऽ कऽ ताकू काज।
भोजन करबा काल मे होइया कनिको लाज।।

काज भेटल हमरा कहाँ जूनि सुमन समझाऊ।
अपना वश केर बात छी आलस रोज भगाऊ।।

Friday, June 24, 2011

देख गाम के यार


पेट भरय लऽ की कहू, कहिया छूटल गाम।
साल बहुत बीतल मुदा,  मोन अछि  ओहि ठाम।

बाहर मे अछि हड़बड़ी, मचल चहुँ दिश शोर।
याद करि नेनपन जखन, भरल आँखि मे नोर।।

आमक गाछी दौड़लहुँ, जखने बहल बसात।
आजुक नवतुरिया बनल, फुसियौंका अभिजात।।

चोर-नुकैया भोर मे, गुल्ली-डण्डा साँझ।
सभहक बेटा सब केर, कियो माय नहि बाँझ।।

कोना बिसरब बात वो, भोगल बाढ़ि सुखार।
सुमन भेल गदगद तखन, देख गाम के यार।।

Tuesday, June 21, 2011

कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ

कोना प्रियतम केँ रंगो लगाबी, कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।
छोड़ि फगुआ केँ चौरचन मनाबी, कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

भरल हाथ मे रंग-गुलाल,
सोझाँ मे अछि सुन्दर गाल,
मोन करैया कऽ दी लाल।
कोना जानितो इजोरिया भगाबी, कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

झालि, मजीरा बाजय ढ़ोल,
गारि लगय अछि मीठगर बोल,
बिना पानि के मचल किलोल।
कोना प्रियतम के संगे नहाबी कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

जागू सजनी भऽ गेल भोर,
गली गली मे मचलय शोर,
खेलब फाग बहुत घनघोर।
कोना जा कऽ सुमन केँ जगाबी कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

Monday, June 20, 2011

नूतन आस

अहाँ सुन्दर
नीक दर्पण-भाग्य
दुख हमर

मोनक बात
द्वन्द सोझाँ मे ठाढ़
भेल पहाड़

की थीक पाप
ककरा कही पुण्य
भावना शून्य

जिनगी छोट
करू दुखक नाश
नूतन आस

सबटा गीत
सुमन अहींक नाम
हमर प्रीत

Sunday, June 19, 2011

कहू कि फूसि बजय छी?

गप्पे टा हम नीक करय छी, 
सबटा उनटा काज।
एहि कारण सँ टूटि रहल अछि, 
मैथिल सकल समाज।
कहू कि फूसि बजय छी?

टाका देलहुँ, बेटी देलहुँ, 
केलहुँ कन्यादान।
ओहि टाका सँ फुटल फटाका, 
खेलहुँ पान मखान।
दाता बनल भिखारी देखियो, 
केहेन बनल अछि रीति?
कोना अयाची के बेटा सब, 
माँगि देखाबथि शान।
कहू कि फूसि बजय छी?

माछ-माउस केर मैथिल प्रेमी, 
मचल जगत मे शोर।
घर मे सम्हरि सम्हरि केँ खेता, 
सानि सानि केँ झोर।
बरियाती मे झोर किनारा, 
खाली माउसक बुट्टी,
मिथिला केर व्यवहार कोनाकय, 
बनल एहेन कमजोर?
कहू कि फूसि बजय छी?

नहि सम्हरब तऽ सच मानू, 
भेटत कष्ट अथाह।
जाति-पाति केँ छोड़िकय बेटी, 
करती कतहु वियाह।
तखन सुमन के गोत्र-मूल केर, 
करब कोना पहचान?
बचा सकी तऽ बचाबू मिथिला, 
बनिकय अपन गवाह।
कहू कि फूसि बजय छी?

Saturday, June 18, 2011

फगुनाहट

फगुनाहट हवा आबि गेल जोर सँ।
राति-दिन फाग खेलब खेलब भोर सँ।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

साँचे मानू हृदय मे जरय अछि अगन।
अहाँ ओहिठाम पाथर बनल छी मगन।
गाम छोड़लहुँ अहाँ जाहि दिन सँ पिया,
कहाँ देखलहुँ हृदय मे मिलन के लगन।
वन्दना, गाम आबू ने झट सँ उमंग मे।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

रंग खेलब उड़ायब अबीरो गुलाल।
चाँद सूरज गगन करब धरती केँ लाल।
घर मे पकवान पूआ बहुत किछु भेटत,
गीत फगुआ के गायब मचायब धमाल।
चेतना, नव जागत भांगक तरंग मे।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

सुख देख के जहर हम पीबैत छी।
फगुए टा खेलाबय लऽ जीबैत छी।
नहि मिलन भेल तऽ मुरझायत सुमन,
बुझब आकाश फाटि गेल सीबैत छी।
वेदना, के मेटत जे पैसल हर अंग मे।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

Friday, June 17, 2011

अभियान

देश-प्रेम के भरल भाव सँ, नित निर्माण करय छी।
सहज-भाव सँ संविधान के, हम सम्मान करय छी।
तखनहुँ पिछड़ल कियै हमर मिथिला, पूछय छी हम दिल्ली सँ।।

सड़क,रेल,बिजली जुनि पूछू, बाढ़ भेल सौभाग्य हमर।
बिनु विद्यालय पढ़य नञि बच्चा, छी बड़का दुर्भाग्य हमर।
आजादी सँ भेटल की हमरा? सब किछु ध्यान धरय छी।
बिना विकासक कष्ट मे रहितहुँ, राष्ट्रक गान करय छी।
तखनहुँ पिछड़ल कियै हमर मिथिला, पूछय छी हम दिल्ली सँ।।

सब चुनाव के बेर मे पूछथि, बाकी सब दिन रहता कात।
सुनि-सुनि आजिज छी हम सब, हुनकर सभहक मीठका बात।
एक अंग भारत के मिथिला, भूखल प्राण तजय छी।
सहनशीलता हमर एहेन जे, एखनहुँ मान रखय छी।
तखनहुँ पिछड़ल कियै हमर मिथिला, पूछय छी हम दिल्ली सँ।।

हरेक साल मिथिलावासी मिलि, जाय छी जेना बाबाधाम।
तहिना चलू एक बेर संसद, किछु नञि किछु भेटत परिणाम।
उन्नत मिथिला के खातिर हम, अभियान कहय छी।
राष्ट्र-भक्ति मे मिलिकय श्रद्धा-सुमन प्रदान करय छी।
तखनहुँ पिछड़ल कियै हमर मिथिला, पूछय छी हम दिल्ली सँ।।

Thursday, June 16, 2011

आत्म-दर्शन

ठोकलहुँ पीठ अपन अपने सँ बनलहुँ हम होशियार।
लेकिन सच कि एखनहुँ हम छी बेबस आउर लाचार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

गाम जिला के मोह नञि छूटल नहिं बनि सकलहुँ हम मैथिल।
मंडन के खंडन केलहुँ आ बिसरि गेल छी कवि-कोकिल।
कानि रहल छथि नित्य अयाची छूटल सब व्यवहार।
बेटीक बापक रस निकालू छथि सुन्दर कुसियार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

मिथिलावासी बड़ तेजस्वी इहो बात अछि जग जाहिर।
टाँग घीचय मे अपन लोक के एखनहुँ हम छी बड़ माहिर।
छटपट मोन करय किछु बाजी कहाँ सुनय लऽ क्यो तैयार?
कतहु मोल नहि बूढ़ पुरानक एक सँ एक बुधियार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

"संघ" मे शक्ति बहुत होइत अछि कतेक बेर सुनलहुँ ई बात।
ढंगक संघ बनल नहि एखनहुँ हम छी बिल्कुल काते कात।
हाथ सुमन लय बिहुँसल मुँह सँ स्वागत वो सत्कार।
हृदय के भीतर राति अन्हरिया चेहरा पर भिनसार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

Tuesday, June 14, 2011

बोध

खाली बाते करब, किछु करबो करू।
जखन बैसल रही, तखन पढ़बो करू।
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

बीतल बचपन अहाँ आब भेलहुँ जवान।
ताश-शतरंज खेलाकऽ नहि तोड़ू मचान।
अवसरक नहि कमी, आँखि खोलु मुदा,
घाम छूटत जखन बनि जायब महान।
भावना, बिनु मोल बिकत बाजार मे
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

कने सोचू जगत मे हमर काज की?
काज केहनो करय मे कहू लाज की?
बोध कर्तव्य के जौं हृदय मे रहत,
गीत जिनगी बनत फेर तखन साज की?
सर्जना, करू नित नूतन व्यापार मे।
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

अहाँ छी बस गवाही अपन कर्म के।
मर्म एहि मे छुपल अछि सभक धर्म के।
बीच काँटक सुमन जेकाँ जीयब सीखू,
कष्ट रहितहुँ हँसब बात नहि शर्म के।
कामना, कटय जीवन बस उपकार मे।
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

Monday, June 13, 2011

की अप्पन पहचान?

सभहक सोझाँ प्रश्न अछि, की अप्पन पहचान?
ताकि रहल छी आयधरि, भेटल कहाँ निदान।।

ककरा सँ हम की कहू, सब अपने छथि मस्त।
हाल पुछब झट सँ कहत, हम दुख सँ छी पस्त।।

स्वारथ सभहक देखियो, लागय छथि बेहोश।
फुसिये मुखिया छी बनल, बाते टा मे जोश।।

मुश्किल सँ भेटत कतहु, मैथिल सनक विवाह।
दान सँग मिथिलाङ्ग मे, बहुतो लोक तबाह।।

बरियाती केँ नीक नहि, लागय माछक झोर।
साँझ शुरू भोजन करत, उठता ताबत भोर।।

रसगुल्ला, गुल्ला बनाऽ, खाओत रस निचोड़ि।
खाय सँ बेसी ऐंठ कऽ, देत पात मे छोड़ि।।

मैथिलजन सज्जन बहुत, लोक बहुत विद्वान।
निज-भाषा, निज-लोक पर, दया करू श्रीमान।।

चोरि, छिनरपन छोड़िकय, करू अहाँ सब काज।
मैथिलजन तखने बचब, बाँचत सकल समाज।।

जाति-पाति सब छोड़िकय, बनू एक परिवार।
मिथला के उत्थान हित, करियो सतत विचार।।

अपन लोक तखने जुटत, बाजब मिठका बोल।
टुटल सुमन जौं गाछ सँ, तखन बिकत बेमोल।।

प्यास

हमर गाम छूटि पर गेल, पेट भरबाक लेल।
भूख लागल अछि एखनो, उमरि बीत गेल।

नौकरी की भेटल, अपनापन छुटल।
नेह  डूबल  वचन केर, आशा टूटल।
दोस्त-यार कतऽ गेल, नव-लोक अपन भेल।
रही   गाम    केर    बुधियार,  एत्तऽ   बलेल।
हमर गाम छूटि गेल -----

आयल पावनि-तिहार, गाम जाय के विचार।
घर  मे   केलहुँ  जौं  चर्चा,  भेटल  फटकार।
नहि   नीक   कुनु   रेल,  रहय  लोक   ठेलमठेल।
कनिया कहली जाऊ असगर, आ बंद करू खेल।
हमर गाम छूटि गेल -----

की  कहू  मन  के  बात, छी  पड़ल  काते  कात।
लागय छाती पर आबि कियो राखि देलक लात।
घर लागय अछि जेल, मुदा करब नहि फेल।
नया    रस्ता    निकालत,   सुमन    ढहलेल।
हमर गाम छुटि गेल -----

Saturday, June 11, 2011

संवाद

काम कितना कठिन है जरा सोचना।
गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

गीत जिनके लिए रोज लिखता मगर।
बात उन तक पहुँचे तो कटता जिगर।
कैसे संवाद हो साथ जन से मेरा,
जिन्दगी बीत जाती मिलती डगर।
बन के तोता फिर गीता को क्यों बाँचना।
गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

बिन माँगे सलाहों की बरसात है।
बात जन तक जो पहुँचे वही बात है।
दूरियाँ कम करूँ जा के जन से मिलूँ,
कर सकूँ गर इसे तो ये सौगात है।
बिन पेंदी के बर्तन से जल खींचना।
गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

सिर्फ अपने लिए क्या है जीना भला।
बस्तियों में चला मौत का सिलसिला।
दूसरे के हृदय तार को छू सकूँ,
सीख लेता सुमन काश ये भी कला।
आम को छोड़कर नीम को सींचना।
गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

नोट : - हिंदी में मेरे लिखे इस गीत का मैथिली में भावानुवाद बड़े भाई आदरणीय विद्याधर झा द्वारा किया गया हैजो नीचे प्रस्तुत है.

समाद (मैथिली भावानुवाद)

काज अछि बड़ कठिन अहाँ बुझि ली।

आन्हरक गाँव मे आइना बेचि दी।।


गीत जकरा लय सब दिन लिखलहुँ जतय।

बात ओकरा नहि पहुँचल तऽ फाटल हृदय।

कोना संवाद होयत हमर लोक सँ,

बीतल जिनगी मुदा रस्ता नै भेटत ओतय।

बनि कय सुग्गा फेर गीता कियै बाँचि दी।

आन्हरक गाँव मे आइना बेचि दी।।


बिन माँगल सलाहक बरसात अछि।

बात सब तक जे पहुँचय ओही बात अछि।

दूरी कम भऽ सकय सब सँ भेंटो होअए,

कऽ सकी जौं एहेन तऽ सौगात छी।

बिना पेंदी के लोटा सँ जल खींच ली।

आन्हरक गाँव मे आइना बेचि दी।।


सिर्फ अपना लय जीवन की जीवन भला।

गाँव बस्ती मे मृत्युक चलल सिलसिला।

दोसरा के हृदय-तार केँ छू सकी,

सीख लेतौं सुमन काश ईहो कला।

आम के छोड़ि कय नीम केँ सींच दी

आन्हरक गाँव मे आइना बेचि दी।।

Friday, June 10, 2011

स्वर्गारोहण अर्थात लोकतंत्रीय मुक्ति

तीन दिन पूर्व अपन निकटतम मित्र घनश्याम बाबू केर दुर्घटना मे मृत्यु भेलाक पश्चात आय गजानन बाबू चौपाल मे बैसल उदास रहथि। योग्य रहलाक बादो एक प्राइवेट स्कूल मे कम वेतन पर नौकरी करब घनश्याम बाबूक विवशता छल कियैक तऽ घर मे वृद्ध माता, पत्नी, विवाहक योग्य पुत्रीक अतिरिक्त शिक्षारत पुत्रक भरण पोषणक भार हुनके कमाय पर। आय पूरा परिवारे बेसहारा भऽ गेल। एहेन घटना तऽ ककरो वास्ते दुखद होइते छैक लेकिन गजानन बाबूक दुख ताहि सँ बेसी बुझना जाइत अछि। जखन चौपालक लोक सब आग्रह करैत खोदि खोदि पुछलखिन्ह, तकर बाद पता चलल हुनक दुखक असली कारण।

दुर्घटनाक बाद घायल घनश्याम बाबू केँ अस्पताल आनल गेल डाक्टर देखतहिं मृत घोषित कऽ देलक। पुत्रक बाहर रहबाक कारणें अंतिम संस्कार तत्काल सम्भव नहि छल। गजानन बाबू आर लोक सब सँ विचार कय लाश केँ शीत गृह मे रखबाक प्रबंध करय लगलाह। लेकिन सरकारी अस्पताल - सीधा सीधी बिना घूसक एको डेग चलब मुश्किल। शीत-गृहक कर्मचारी बाजल - "जगह नहीं है" गजानन बाबू स्थिति सँ उत्पन्न सम्वेदना देखबैत, अपन सब ज्ञान, अनुभव लगाकऽ थाकि गेलाह किन्तु शीत-गृह कर्मी अपन राग बजबैत रहल जे - "जगह नहीं है" गजानन बाबू परेशन छलाह। ताबत सरकारी तंत्रक मौन संकेत बुझनिहार एक नवयुवक आबि कर्मचारीक हाथ मे एकटा नमरी थमाबैत कहलखिन्ह - "अब तो जगह है "? तत्काले जगह भेट गेल। लाश राखल गेल। काज भेलाक पश्चातो गजानन बाबू दुखी छलाह।


अगिला दिन पुत्रक आगमनक बाद पोस्टमार्टमक तैयारी होमय लागल। अस्पताल मे एम्बुलेन्सक सुविधा सेहो छल। जहिना आजुक समय मे सरकारी गाड़ी सँ सरकारक काज छोड़ि शेष सब काज होइत अछि तहिना अस्पताल केर प्रबंधकक घर मे प्रबंध करवाक हेतु एम्बुलेन्सक सार्थक उपयोग भऽ रहल छल। प्रबंधकक नाम पर अपन घरक प्रबंध करवा मे ड्रावर साहेब सेहो संकोच नहि करथि। एम्बुलेन्सक कारणे देरी होमय लाग। एम्बुलेन्स आयल आओर ड्राइवर साहेब आबतहिं बजलाह - " अभी हम तुरत आये हैं, एक घण्टे के बाद दूसरे शिफ्ट का आदमी जायगा" एतबा सुनतहि फेर शीत-गृह मे काज आयल वो योग्य आधुनिक युवक अपन चमत्कार देखौलन्हि। पचास टाकाक एकटा नोट ड्राइवर साहेब कें दैत बजलाह -"अब चलिए" ड्राइवर तत्काल तैयार भऽ गेल।


गजानन बाबू मित्रक विछोह, मित्रक परिवारक भबिष्यक चिन्ता सँ तऽ चिन्तिते छलाह, ऊपर सँ सब देख भीतरे भीतर छटपटावैत रहलाह जे नैतिकता, ईमानदारी कतऽ चलि गेल। पोस्टमार्टम हाऊस मे सेहो भीड़ छल। बेसी आत्महत्या आओर बेसी दुर्घटना हमरा लोकतंत्रक बिशिष्ट बिशेषता अछि। किनारा जाऽ कऽ जखन सरकारी करमचारी सँ जानकारी लेबाक कोशिश भेल तऽ वो असंवेदनशील प्राणी बाजल - "ये भीड़ तो आप देख ही रहे हैं। सब इसी काम के लिए आया है। कोई राशन या वोट की लाइन तो है नहीं। और मेरे दो ही हाथ हैं। आपका नम्बर जब आयगा तब देखेंगे" लोक सब अनुमान करय लगलाह तऽ चारि घण्टासँ कम केर मामला नहि छल। ताबत धरि तऽ राति भ् जायत। सबकेँ चिन्तित देख पुनः वो योग्य युवकक योग्यताक काज उपस्थित भेल। येन-केन-प्रकारेण पाँच टा नमरी पर बात फरियायल आओर मरलाक बादो लाइन तोड़ि कऽ घनश्याम बाबूक लाश केँ पोस्टमार्टम हाऊस सँ मुक्त कराओल गेल। गजानन बाबूक नैतिक शिक्षा, ज्ञान, अनुभव सबटा राखले रहि गेल। ककरा चिन्ता अछि जे मृतकक परिवार पर कतेक संकट आयल अछि। अपन वेतनक अतिरिक्त बेसी सँ बेसी आमदनी करब सरकारी सेवकक युगधर्म अछि। एहि युगधर्मक पालन सरकारी सेवकगण अबाध गति सँ सम्पूर्ण देश मे कऽ रहल छथि। एहि क्रम मे पुलिस केँ सेहो यथायोग्य दक्षिणा देबय पड़ल।


थाकल हारल मृतकक स्वजन परिजन समेत गजानन बाबू श्मशान घाट एलाह। सब जगह सँ बेसी भयावह दृश्य छल। ओहनहियो श्मशान तऽ भयावह होइते छैक। किन्तु जे भयावहता लोक सब कें देखऽ पड़लन्हि वो आओर भयावह छल। जगहक वास्तें, लकड़ीक वास्तें, अस्थि कलश रखबाक हेतु एतय तक कि मृतकक मृत्यु प्रमाण पत्रक वास्तें सेहो, सब जगह नियुक्त कर्मचारीक नियमित काजक बदला मे अनियमित रूप सँ यथायोग्य टाका खर्च करय पड़लन्हि। एवम प्रकारें घनश्याम बाबू वर्तमान लोकतंत्रीय पद्धतिक जाल सँ मुक्त भऽ स्वर्गारोहण केलाह। गजानन बाबू सोचि सोचि भावुक एवं चिन्तित छलाह संगहि एक यक्ष प्रश्न सेहो ठाढ़ छल जे घनश्याम बाबू तऽ कहुना लोकतंत्रीय मुक्ति पाबि स्वर्गारोहण केलाह किन्तु हमर मुक्ति केर कोन रास्ता निकलत? हमर स्वर्गारोहण भऽ सकत की नहि?