Wednesday, August 29, 2012

अभोगिया कर्ण

गामक बाते अद्भुत होइत अछि। एका पर एक लोक आ प्रतिभा। एहने प्रतिभावान व्यक्तित्व मे सँ एक छथि धनेश्वर जी। यथा नाम तथा गुण। खूब टाका पैसावला करोड़पति लोक। एहि धनक अर्जन मे हुनक कृपणताक अर्थात् कंजूसीक बहुत योगदान। आयधरि ज्ञात अज्ञात कंजूसीक जतेक धारा वा विधा देखबा मे आयल अछि हमरा बुझने सभक गंगोत्री धनेश्वर जीक माथा सँ निकलल हेतय आ भबिष्यो मे हमरा उम्मीद अछि जे कंजूसी मे हिनका सँ आगाँ सोचयवला लोक सम्भवतः नहिये भेटत। किंचित विश्वास नहि होयत। चलू हुनका जीवनक किछु उदाहरण सँ हम अपना बात केँ पुष्ट करवाक सफल कोशिश करैत छी।

धनेश्वर जी एक दूरस्थ सरकारी विद्यालय मे शिक्षक छथि। प्रत्येक शनिवार केँ गाम एनाय आ सोमवार केँ पुनः अप्पन विद्यालय गेनाय हुनक नियमित कार्यक्रम। गाम सँ रेलवे स्टेशनक दूरी १५ किलोमीटर। आजुक समय मे रिक्शा, टमटम, टेम्पो वा अन्य आवागमनक साधनक कुनु अभाव नहियो रहलाक बादो आयधरि धनेश्वर जी कोनो सवारी गाड़ी पर अपना देह केँ नहिये चढ़ा देलखिन्ह। सबदिन "बिनोबा ट्रान्सपोर्टक" (पैदल) सहायता सँ स्टेशन जाइत छथि आ भबिष्यो मे एहि अभ्यास केँ छोड़बाक कुनु योजना नहि छन्हि। दोसर उदाहरण लियऽ - सामान्य गाम घरक परिवार मे तीन प्रकारक तेलक उपयोग होइत अछि - करू (सरसों) तेल भोजनादि लेल, नारियल तेल - देह, माथ मे लागाबय लेल आ मटिया (किरासन) तेल - साँझ मे डिबिया लालटेन जराबय लेल। धनेश्वर जीक घर मे तीनू प्रकारक तेलक प्रवेश-निषेध अछि। घोर इमरजेन्सी मे एहि तेलक कम सँ कमतर प्रयोगक आग्रही सेहो छथि। ई अलग बात अछि जे लोकक ओहिठाम भोज-भात मे नीक सँ सबकिछु खाइत छथि दूध-दही, मिठाई आदि सब किछु परन्तु अपना घर मे एहि सब नीक निकूत खाद्य-पदार्थक अपना समक्ष प्रवेश वर्जित। कतेक उदाहरण दी - धनेश्वर जी गामक एक स्वाभाविक सुलभ सफाई-कर्मी सेहो छथि जे रास्ता, गली-कूची मे खसल सबटा घास-पात, गोबर वा आओर सबकिछु गामक लोकक द्वारा त्यक्त पदार्थ केँ नियमित रूप सँ एकटा बाल्टी मे समेट अपना खेत मे दऽ आबैत छथिन्ह। गामक लोक सफाई सँ निश्चिन्त। आब पाठकगण बुझि गेल हेबय हुनक कृपणताक महिमा। लागैया सन्तोष नहि भेल? लियऽ एकदम टटका वृतांत। धनेश्वर जीक समधि पानि लऽ केँ शौचालय तरफ विदा भेला तखने हुनका देखतहिं धनेश्वर उवाच - समधि लेट्रीन मे पानि कमे खसेबय कियैक टंकी जल्दी भरि जेतय। जय हो जय हो----

साँझक समय गामक चौपाल पर सब दिन जेकाँ गजानन बाबूक महफिल सजल छल। दिन शनिवार। धनेश्वर जी केँ आबैत देखि अचानक गजानन बाबू बाजि उठला - आबि गेला राजा कर्ण। ई सम्बोधन सुनितहिं हमरा सनक कम ज्ञानवला लोकक मुँह सँ हठात् निकलल - जा! अपने ई की कहि देलिये गजानन बाबू? एहेन कंजूस केर तुलना राजा कर्ण सनक दानी सँ कियैक? गजानन बाबू बजला - नहि बुझलिये? देखियो हमरा बुझने धनेश्वर जी तऽ राजा कर्णो सँ बेसी दानी छथि कियैक तऽ राजा कर्ण यदि किछु दान करैत रहथि तऽ किछु भोग सेहो करैत रहथि। लेकिन अपन  धनेश्वर सब किछु तऽ दाने कऽ रहल छथि। भोगय तऽ किछुओ नहि छथि। हुनके कमाय पर हुनक धिया-पुता, कनिया सब देखियो केहेन मजा सँ रहय छथिन्ह। धनेश्वर तऽ बस टाका कमाबयवला मशीन थीका। भोगय छथि आ भबिष्यो मे भोगता तऽ कियो आओर। कहू सर्वस्व दान कऽ देलखिन्ह की नहि? आब कहू कोनो शंका अछि जे धनेश्वर राजा कर्णो सँ पैघ दानी भेला कि नहि? हम अबाक भऽ गेलहुँ ऐहेन सार्थक आ सामयिक तर्कक सोझाँ ।