Wednesday, September 19, 2012

बन्द : आम लोकक हित वा अहित?

मँहगाई रोज बढ़ले जाऽ रहल अछि। कहियो डीजल कहियो रसोई गैस तऽ कहियो पेट्रोल। कोन दिन कोन चीजक दाम सरकार बढ़ाऽ देत कहब कठिन? लोक तबाह भऽ गेल अछि जोड़ैत जोड़ैत। हमरा तऽ कखनो काल लागैत अछि जे आदमी छोड़ि सब किछु मँहगे भऽ रहल अछि। आय गामक चौपाल पर गजानन बाबू आबितहिं निराशा-भाव सँ बाजब शुरू केलन्हि। अखबार, रडियो आ कहियो कहियो टी० वी० (बिजलीक अभाव मे देखवाक संयोग कम्मे) सँ अर्जित नित्य-ज्ञानक वमन चौपाल पर गामक लोकक सोझाँ मे केनाय हुनक नियमित कर्म छन्हि। लोको सब हुनका आदत सँ परिचित छथि। लेकिन एहनो बात नहि जे गजानन बाबू खाली गप्पे टा दैत छथिन्ह। देश, राज्य आ समाजक प्रति हुनक विचार सँ सोचबाक लेल लोक सेहो विवश भऽ जाइत छथि।

आब लियऽ? भारत बन्दक आयोजन पुनः भेल बहुत ओहेन राजनैतिक दल आ संगठन द्वारा जाहि मे अधिकतर के विश्वसनीयता आमजनक बीच मे लगभग खतमे बुझू। ओहिनहियो साल भरि तऽ बन्दे बन्दक घोषणा होइत रहैत छैक। कखनो मँहगाई बढ़बाक नाम पर तऽ कखनो भ्रषटाचारक नाम पर। कहियो सरकारी तंत्रक विफलताक नाम पर तऽ कहियो नेताक रूप मे परिवर्तित समाजक कुख्यात अपराधीक "शहीद" भेला पर। कतेक बन्द आ कहिया तक? गजानन बाबू चिन्तित स्वर मे अप्पन वक्तव्यक श्रृंखला जारी राखलन्हि। लोकतंत्र मे सरकार आ व्यवस्थाक खिलाफत करबाक लेल हमरा किछु रास्ता आ तरीका गाँधी बाबा द्वारा सिखओल गेल जाहि मे बन्दक आह्वान् सेहो अछि। परन्तु एहि अधिकारक प्रयोग कखन, कहिया आ कोना करी? एकर विगत कतेक दशक सँ निरन्तर अवहेलना भऽ रहल अछि।

गजानन बाबू बजलाह - हम बन्द समर्थक किछु नेता केँ पुछलहुँ जे आखिर ई बन्द कियै? जवाब भेटल जे मँहगाई आ भ्रष्टाचार सँ आम लोक त्रस्त भऽ गेल अछि। आम लोकक हित मे एहि बन्दक आह्वान भेल अछि। प्रश्न स्वाभाविक अछि जे एहेन बन्द मे प्रायः आमे लोक बेसी परेशान सेहो सेहो होइत छथि। हुनक हित की हेतेय कपार? रोज कमाय-खायबलाक रोजी-रोटी छिनेतय। बीमार लोक अस्पताल नजि जाऽ सकतय आ बच्चा सब विद्यालय। पैघ लोक केँ कोनो अन्तर पड़तय की? लेकिन अपना देश मे तऽ बेसी लोक रोज "लूटि आनू कूटि खायबला" छथि। कहू भेल ने मजेदार बात? आम लोकक हित मे बन्दक आयोजन करयबला दल आ संगठन आम लोकक अहिते ने कऽ रहल छैक। हे भगवान। की हेतय एहि देशक? एहि समाजक? आय काल्हि बन्दक मने भेल सद्यः गुण्डागर्दी। बन्दक आह्वान के मतलब "स्वेच्छा" नहि "विवशता" अर्थात् बन्द करय पड़तौ नहि तऽ तोड़-फोड़ शुरू। सभहक अप्पन अप्पन स्वार्थ। सब एक दोसर केँ ठकय मे लागल अछि।
 
स्वतंत्रता आन्दोलनक समय आ बादो मे कतेक बेर बन्दक आह्वान भेल जाहि मे लोक स्वेच्छा सँ सभहक सहयोग भेटल। दल वा संगठनक एहेन विश्वसनीयता छलैक जे बस आह्वानक देरी आ स्वतः-स्फूर्त विरोध शुरू। कियै देखलिये नहि जे अण्णाक आह्वान पर सम्पूर्ण देशक लोक कोना एकत्रित भऽ गेल? हमरो सभ केँ स्वतः-स्फूर्त बन्द आ जबरदस्तीक बन्दक अन्तर बुझऽ पड़तय। गजानन बाबू कहलन्हि जे हमर अभिप्राय ई कखनहुँ नहि जे गलत बातक विरोधे नहि हेबाक चाही? वरन् दल वा संगठन समाजक बीच अपना नियमित क्रिया-कलाप सँ अप्पन विश्वसनीयता बढ़ाबय तखन फेर जबरदस्तीक कोनो जरूरते नहि पड़तय। लेकिन एहि गुण्डागर्दी सँ भरपूर "बन्द" सँ समाज हित सँ बेसी अहिते होयत

Wednesday, September 12, 2012

अंगरेजी पर सवार हिन्दी प्रेम

आय चौपाल मे गजानन बाबूक चेहरा किछु उखड़ल उखड़ल आ किछु गम्भीर सेहो बुझना गेल। कारण बुझबाक प्रयास केलहुँ तऽ किछु देर बाद बजलाह की कहू? जेहने अपना मिथिला मे मातृभाषा मैथिलीक दशा अछि किछु किछु ओहने हाल राज-भाषा (आयधरि संवैधानिक तौर राष्ट्र-भाषा नहि) हिन्दीक देखवा मे आबि रहल अछि। आय १४ सितम्बर यानि हिन्दी दिवस यानि हिन्दी केँ आजुक दिन सँ सरकारी तौर पर "राज-काजक भाषा" मानल गेल। सँगहि सँग तथाकथित हिन्दी-प्रेमीक एक अनवरत लड़ाय सेहो जे एक दिन हिन्दीओ कम सँ कम हिन्दुस्तान मे राष्ट्र-भाषा बनबे करत। बड़ा विचित्र स्थिति अछि। जहिना साल मे एक दिन हम सब मातृ-भाषा दिवस मनाकऽ अप्पन कर्तव्यक इतिश्री कऽ लय छी बस ओहने खेला राष्ट्रीय स्तर पर सेहो हर साल होइत अछि प्रायः देशक सब सरकारी कार्यालय मे।

गजानन बाबू पुनः बजलाह - अपना देश मे आजादीक बाद जतेक घोषित दिवस अछि सभहक एहने दशा अछि। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयन्ती आदि सनक राष्ट्रीय पर्वक दिन की होइत अछि? बस औपचारिकताक निर्वाह। आओर की? कार्यालयीय स्तर पर जिनक "ड्युटी" लागन्हि से जेबे करताह। या फेर जिनका किछु सम्मान वा पुरस्कारक सूचना भेटैत छन्हि सेहो जाइत छथि। शेष किनका की मतलब? ई सब तऽ एक अतिरिक्त छुट्टी आ आनन्दक दिन के अतिरिक्त किछु नहि। देश-प्रेम वा कोनो महापुरुषक प्रति प्रेम? ई बस हम सब भाषणे टा मे सुनि सकैत छी। सेहो ओहेन व्यक्तित्वक मुँह सँ जे जिनगी भरि देशक अहित कऽ अपने टा हित केलन्हि।

बात केँ आगू बढ़बैत गजानन बाबू कहलखिन्ह - आय पुनः हिन्दी-प्रेमक नाटक देखू। यत्र-तत्र कार्यक्रमक आयोजन होयत। संस्थागत रूप सँ अतिथि बजाओल जायत। जतऽ सुनब आ पढ़ब अन्य वक्ताक सँगे मुख्य वक्ताक लिखल भाषण मे हिन्दीक प्रति अगाध प्रेमक उद्गार भेटत। हाँ ई अलग बात अछि जे ओहि भाषण मे कतेको अवाँछनीय अंगरेजी शब्द सेहो भेट जाय तऽ आश्चर्यक कुनु बात नहि। सबसँ मजेदार बात ई जे जतेक लोक एहि हिन्दी दिवसक कार्यक्रम मे बढ़ि चढ़िकय भाग लय छथि आ हिन्दीक प्रति अपन अनुराग देखबय छथि हुनकर सभहक सबटा धिया-पुता अंगरेजी विद्यालय मे अनिवार्यरूपेण पढ़य छथि। राष्ट्री स्तर पर हर स्थापित दिवसक प्रति एहि नकली प्रेम-प्रदर्शन सँ गजानन बाबू आय किछु दुखी रहथि आ अन्त मे अपना स्कूलक हिन्दी दिवसक कार्यक्रम मे जिला शिक्षा अधीक्षक केर भाषणक मजेदार संस्मरण सुनौलन्हि। जिला शिक्षा अधीक्षकक हिन्दी दिवस पर बयान छलन्हि जे "आजकल लोगों की बहुत बैड हैबिट हो गई है कि हिन्दी बोलने में भी इन्गलिश वर्ड का यूज करते हैं।" अर्थात् अंगरेजी पर सवार हिन्दी-प्रेम।  

Wednesday, September 5, 2012

विद्यार्थी = जे विद्याक अरथी उठाबय

सब साल जेकाँ एहियो साल शिक्षक दिवस बीत गेल। एकटा आओर अघोषित छुट्टीक दिन शिक्षकगण हेतु। महान शिक्षा-शास्त्री डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीक जन्म दिवस आ जिनक जीवन यात्रा एक शिक्षकक के रूप मे शुरू भेल आ देशक सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुँचल। हुनके सम्मान मे ई शिक्षक दिवस प्रतीकात्मक रूप मे मनाओल जाइत अछि। आजादीक संघर्ष सँ निकलल ताहि दिनक शासक-वर्गक स्पष्ट धारणा रहन्हि जे एहेन महापुरुषक जीवन-वृत्त केँ स्मरण केला सँ छात्र समेत आओर लोक केँ प्रेरणा भेटतय। मुदा आजुक स्थिति देखि की हम कहि सकय छी जे की वो पवित्र उद्येश्य पूर्ण भऽ रहल अछि?

गजानन बाबू अपना समय केर एक अभूतपूर्व शिक्षक जे एखन भूतपूर्व भऽ गेल छथि। साँझक समय गामक चौपाल मे एनाय आ हुनका सँ गप्प केनाय सँगहिं गजानन बाबू द्वारा प्रयोजित चाय आ तमाकू खेनाय  गामक लोकक प्रायः नियमित दिनचर्या। गजानन बाबू आन दिनक अपेक्षा आय किछु उदास रहथि। लोक पूछय लागलखिन्ह तऽ बजलाह - की कहू? आजुक शिक्षा व्यवस्था मे भेल पतन सँ मोन कने खिन्न अछि। पहिलुका समय मे शिक्षक खाली किताबेटाक ज्ञान-दान नहि करैत रहथिन्ह बल्कि नैतिक, सामाजिक शिक्षा सँ हुनक सरोकार सेहो रहन्हि। शिक्षक - छात्रक बीच एक अद्भुत आत्मीयताक सम्बन्ध सेहो रहय पिता - पुत्रवत्। छात्र अथवा छात्रक अभिभावक द्वारा विद्यालय आ विद्यालय सँ बाहर सेहो शिक्षकक ओतबे मान-सम्मान सामान्य बात छल। कतेक बेर एहनो देखने छी जे यदि धिया-पुता घर मे बेसी उचृंखल बनय तऽ अभिभावक ई कहि शासन करैत रहथिन्ह जे "चलऽ काल्हि मास्टर साहेब सँ तोहर शिकायत करबौ" आ बच्चा शांत। गामक कुनु भोज-भात मे विद्यालय के सब शिक्षक स्थायी रूपें आमंत्रित रहथि सँगहिं यदि शिक्षक गाम तरफ आबथि तऽ धिया-पुता सँ अभिभावक तक अपन जगह ठाढ़ भऽ हुनका सम्मान दैत रहथिन्ह।

मुदा एखन? गजानन बाबू अपना बात केँ आगाँ बढ़बैत बजलाह - सरकारी आदेश - जे विद्यार्थी केँ मरनाय पीटनाय कानूनी अपराध मानल जायत। यानि डर खतम। सरकारी उपेक्षाक कारणे मासक मास शिक्षकक वेतन बन्द। तेसर बात शिक्षकगणक मुख्य सरकारी कार्य - मनुखक जनगणना, पशुक जनगणना, मकानक गणना, चुनाव करेनाय, स्कूल मे खाना बनबेनाय आदि आदि रहि गेल अछि यानि पढ़ाय छोड़िकय आओर सबकिछु। नीति-श्लोक आ नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम बाहर भऽ गेल आ "सेक्स" पढ़ाबय के बात सरकारी स्तर पर होमय लागल। हे भगवान्! परिणाम?  आय-काल्हि हाले एकदम विचित्र भऽ गेल अछि। एके पानक दोकान पर एक्के समय मे मास्टर साहेब आ विद्यार्थी पान - सिगरेटक सेवन करय छथि। कतेक बेर तऽ इहो सुनय मे आबय अछि जे संगे संग मद्य सेवन सेहो करय छथि। गुरू - शिष्य परम्पराक अन्ते भऽ गेल। परिणाम स्वरूप आब विद्यार्थिये शिक्षक केँ धमकाबय लागल। कनिये टा मत-मतान्तर भेला सँ शिक्षकक विरोध मे स्कूलक गेट बन्द आ नाराबाजी शुरू।

चौपाल मे सब मंत्र-मुग्ध भऽ सुनैत रहथि।  गजानन बाबू पुनः बाजब शुरु केलन्हि - विद्यालय शब्दक अर्थ होइत अछि - विद्या + आलय यानि विद्याक घर आ विद्यार्थी शब्दक अर्थ विद्या + अर्थी यानि विद्याक उपार्जन करनिहार। मुदा आजुक समय मे अर्थ बदलि गेल। आय काल्हि विद्यालय = विद्या + लय यानि जाहिठाम विद्या पूर्णरूपेण लय भऽ जाय अर्थात् मट्टी मे मिल जाय आ विद्यार्थी = विद्या + अरथी अर्थात् जे विद्याक अरथी उठाबय। ठीके आजुक समय मे विद्याक अरथीये ऊठि रहल अछि। गजानन बाबूक विवेचना सँ सब अचंभित भऽ सोचय लऽ मजबूर भऽ गेलाह।