Thursday, March 29, 2012

तखने जीयब शान सँ

समय के सँग मे डेग बढ़ाबी, तखने जीयब शान सँ
किछु ऊपर सँ रोज कमाबी, तखने जीयब शान सँ

काका, काकी, पिसा, पिसी, रिश्ता भेल पुरान यौ
कहुना हुनका दूर भगाबी, तखने जीयब शान सँ

सठिया गेला बूढ़ लोक सब, 
हुनका बातक मोल की
हुनको नवका पाठ पढ़ाबी, तखने जीयब शान सँ

सासुर अप्पन, कनिया, बच्चा, एतबे टा पर ध्यान दियऽ
बाकी सब सँ पिण्ड छोड़ाबी, तखने जीयब शान सँ

मातु-पिता केर
 चश्मा टूटल, कपड़ा छय सेहो फाटल
कनिया लय नित सोन गढ़ाबी, तखने जीयब शान सँ

पिछड़ल लोक बसय
मिथिला मे, धिया-पुता सँ कहियो
अंगरेजी मे रीति सिखाबी, तखने जीयब शान सँ

सुमन दहेजक निन्दा करियो, बस बेटी
 वियाह मे
बेटा बेर मे खूब गनाबी, तखने जीयब शान सँ

Wednesday, March 28, 2012

कियै कानय छी

भेटेय छै फल अपन कर्मक जखन मानय छी
फुटल नसीब तखन कहिकय कियै कानय छी

खेलहुँ नय नीक-निकुत कहियो ककर दोष कहू
खाय छी कूटि केँ ओतबे नित लूटि आनय छी

रहल छी साल कतेक संगे आबो चीन्ह लियऽ
बुझिकय खाट कियै हमरा नित गतानय छी

लोक मे पानि भऽ रहल कम आओर दुनिया मे
आँखि के नोर सँ नित आटा हमहुँ सानय छी

लगल छी रोज प्रशंसा मे जिनका टाका छै
हुनक खराब छलय नीयत जखन जानय छी

बूढ़ केँ ज्ञान बिसरि कहलहुँ बोझ भऽ गेला
मोन सँ सोचि कहू हुनका के गुदानय छी

टूटल प्रतिज्ञा सुमन जखने तखन हूब घटल
करू प्रयास खूब मन सँ किछुओ ठानय छी

Tuesday, March 27, 2012

जतबय अछि औकात करय छी

कत्तेक सुन्दर बात करय छी
पाछाँ सँ आघात करय छी

जखनहि स्वार्थ सधल जिनका सँ
तखनहि हुनका कात करय छी

सगरे देख रहल छी प्रायः
झगड़ा हम बेबात करय छी

टाका सबटा गेल दहेजे
डीह बेचि बरियात करय छी

कनिको दुख नहि सुमन हृदय मे
जतबय
अछि औकात करय छी

Monday, March 26, 2012

खूब मोन सँ सभक सुनय छी

कनिये कनिये रोज लिखय छी
छात्र एखन, साहित्य सिखय छी

भारी भरकम बात लिखल नहि
घर-आँगन केर बात कहय छी

बेसी वक्ता, कम श्रोता
अछि
कविता सँ सम्वाद करय छी

कहियो नहि मन-दर्पण देखल
बाहर दर्पण रोज देखय छी

छी असगर ई भाव भीड़ मे
बनिकऽ पानी संग बहय छी

एहि जीवन मे दुख ककरा नहि
दुख मे नित मजबूत रहय छी

कियो सुमन के सत्य सुनल नहि
खूब मोन सँ सभक सुनय छी

Sunday, March 25, 2012

लागल एहेन रिवाज बिसरलहुँ

अप्पन अप्पन काज बिसरलहुँ
सच पूछू तऽ लाज बिसरलहुँ

सिखलहुँ लूरि जीबय के जतय
कियै ओहेन समाज बिसरलहुँ

छूटल अरिपन, सोहर सब किछु
लागल एहेन रिवाज बिसरलहुँ

सासुर मे छल खूब रईसी
घर मे नखरा-नाज बिसरलहुँ

मन गाबय छल गीत मिलन के
सुर के सँग मे साज बिसरलहुँ

संस्कार के बात करी नित
जीबय के अन्दाज बिसरलहुँ

चुप रहलहुँ अन्याय देखिकय
सुमन हृदय आवाज बिसरलहुँ

Saturday, March 24, 2012

ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी

दूर बहुत, पर गाम देखय छी
भेल बहुत बदनाम देखय छी

काली-पूजा, फगुआ, छूटल
दारू के परिणाम देखय छी

बापक कान्ह कोदारि सदरिखन
बेटा केर आराम देखय छी

कष्ट झुकय मे नवतुरिया केँ
ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी

अपनापन के बात निपत्ता
घर घर मे संग्राम देखय छी

धन के अर्जन घूसखोरी सँ
हुनके बड़का नाम देखय छी

सुमन सुधारक आशा टूटल
तखनहि केवल राम देखय छी

Thursday, March 15, 2012

व्यर्थक बात करय छी

अहाँ, व्यर्थक बात करय छी
सब दिन कहलहुँ, अहीं लऽ मरय छी।
अहाँ, व्यर्थक बात करय छी


आस लगेलहुँ, रूप सजेलहुँ, 
तखनहुँ साजन अहाँ नहि एलहुँ।
काज करय में दिन कटैया, 
कुहरि कुहरिकय राति बितेलहुँ।
पेटक कारण, अहाँ बिनु साजन, 
जहिना तहिना रहय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----

सब सखियन के साजन आयल, 
सभहक घर मे बाजय पायल।
हँसी मुँह पर ओढ़ि लेने छी, 
लेकिन भीतर सँ छी घायल।
विरहन के दुख, लोक बुझत की, 
तरे तर जरय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----

पीड़ा मन के, बिनु बन्धन के, 
ककरा कहबय दुख जीवन के।
मजबूरी तऽ सब दिन रहतय, 
ताकू अवसर सुमन मिलन के।
आँखिक नोर सूखल पर भीतर, 
नोरक संग बहय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----