जाति पाति के नाम पर, खूब चलल अछि राज।
कहिया जागब यौ सुमन, टूटत जखन समाज?
मीठगर बोली सुनिकय, मोन बढ़ल विश्वास।
मिथिला डूबल पानि मे, मेटि सकल नहि प्यास।।
भागि रहल युवजन सुमन, छोड़ि छाड़िकय गाम।
बन्द भेल उद्योग सब, सरकारी परिणाम।।
मिथिला सँ बाहर सुमन, उन्नत मैथिल लोक।
ध्यान हुनक नहि गाम पर, ई मिथिला के शोक।।
मैथिल प्रतिभा के धनी, बिसरि गेल अछि मूल।
देर भेल पहिने बहुत, आब करू नहि भूल।।
कहिया जागब यौ सुमन, टूटत जखन समाज?
मीठगर बोली सुनिकय, मोन बढ़ल विश्वास।
मिथिला डूबल पानि मे, मेटि सकल नहि प्यास।।
भागि रहल युवजन सुमन, छोड़ि छाड़िकय गाम।
बन्द भेल उद्योग सब, सरकारी परिणाम।।
मिथिला सँ बाहर सुमन, उन्नत मैथिल लोक।
ध्यान हुनक नहि गाम पर, ई मिथिला के शोक।।
मैथिल प्रतिभा के धनी, बिसरि गेल अछि मूल।
देर भेल पहिने बहुत, आब करू नहि भूल।।
आपकी रचना कल बुधवार [17-07-2013] को
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सादर
सरिता भाटिया