Sunday, July 6, 2025

भगवानो इन्सान मे

करय पड़य छै बारी-बारी,
अप्पन जीबय केर तैयारी,
सबटा  काज  करू  पर  राखब, प्रेम आपसी ध्यान मे। 
जन्म  हमर  भेल  प्रेमक  कारण, नित  राखू संज्ञान मे।।

ई दुनिया अछि  प्रेमक  सागर, की ताकय छी बाहर मे।
जखन बाहरी दुनिया सँ भी, पैघ जगत अछि भीतर मे।
प्रेमक  महिमा  भरल  ग्रंथ  मे, आ  गीता  के  ज्ञान मे।।
जन्म हमर -----

घर - घर मे  जे पैसल झगड़ा, सुलझत प्रेमक बोली सँ।
भूल भेल किनको सँ घर मे, बुझियौ भेल हमजोली सँ। 
सुखी रहब जौं कलह सँ बेसी, राखब ध्यान निदान मे।।
जन्म हमर -----

प्रेम सँ एलहुँ, ईश-प्रेम लय, जग सँ बाहर हम जायब।
पुनर्जन्म केँ जौं मानय छी, पुनः सुमन जग मे आयब।
सगरो  सतत  प्रेम अछि पसरल, भगवानो इन्सान मे।।
जन्म हमर -----

हार कही या जीत?

सुख-दुख के अनुभव सुमन, सबके अप्पन मीत।
जिनगी  समझौता  सतत, हार  कही  या  जीत??

हार - जीत   नहि   तौलियो,  दुनु   के   सम्मान।
मान   हार  के  जे  करत,  वो   जीतत  श्रीमान।।

घर-घर  मे झगड़ा - कलह, सगरो पसरल शोक।
खोता  अपन उजाड़िकय, रहल खुशी के लोक।।

निर्बुद्धिया   धिया - पुता,  परचट  जखने  भेल।
वो  घर  मे  तखने  शुरू, उठा - पटक  के खेल।।

अपना बच्चा पर  रहय, सभहक  किछु अरमान।
मातु-पिता वो शत्रु सम, जे सिखबथि अभिमान।।

हरदम  घर  मे  रोकियौ, बिना  वजह  के  चीख।
सामाजिक व्यवहार  लय,  बहुत  जरूरी  सीख।।

नीक   बनत  परिवार  तेँ,  निक्के  रहत  समाज।
तखने सभहक एक सँग, बाजत  सुख के साज।।

बुढ़िया घर के दाई मीता

बाहर   मे   सब   भाई   मीता 
घर   मे   रोज   लड़ाई   मीता

टूटि  रहल   मर्यादा  प्रतिदिन 
ताकू   उचित    दवाई   मीता

घर - घर  बूढ़  उपेक्षित भेटत 
बुढ़िया   घर   के   दाई  मीता 

दुनियादारी    के    रस्ता   मे
कदम - कदम पर खाई मीता 

सामाजिक सद्भाव अलोपित 
संभव   कोना  भलाई  मीता 

हरदम  दोसर  के  चरित्र  पर 
छींटय   छी  रोशनाई   मीता 

अप्पन  आदत  रोज सुधारू 
बाँटत  सुमन  मिठाई  मीता 

जीयब सुख सँ मुश्किल

वो पढ़ल-लिखल जाहिल, जौं पैसल हृदय जलन।
जीयब सुख सँ मुश्किल, , जौं पैसल हृदय जलन।।

जिनका नहि आगां सूझय, नहि अप्पन सुख-दुख बूझय।
रूसल - झगड़ालू  चेहरा,  बिन  बातक  सब  केँ  लूझय।
मुश्किल बैसब महफिल, , जौं पैसल हृदय जलन।।
जीयब सुख सँ -----

अछि ज्ञानक खाली - ढाकी, पर मरचाय  सन  बेबाकी।
स्वारथ  मे चरण पखारय, निकलत एक दिन चालाकी।
वो बनत कोना काबिल, , जौं पैसल हृदय जलन??
जीयब सुख सँ -----

पहिने बनियो परिवारक, अहाँ तखने बनब समाजक।
जे लोक-वेद  सँ  सीखय, संभव  वो बनथि प्रशासक।
वो सुमन सभक कातिल, , जौं पैसल हृदय जलन।।
जीयब सुख सँ -----

Tuesday, July 1, 2025

ताक-झाँक छोड़ू दोसर के

सुगना! खोता अपन सम्हारी। 
ताक - झाँक  छोड़ू  दोसर  के,  आदत  अपन  सुधारी।।
सुगना! खोता -----

जे सामाजिक नियम बनल अछि, पालन बहुत जरूरी।
रहबय  कत्तऊ  पर  समाज सँग, जीयब अछि मजबूरी। 
समाधान छै सब उलझन केर, मिलजुलि बैसि विचारी।।
सुगना! खोता -----

नेक  सोच  सँ  डेग  बढ़ाऽ कय, बिगड़ल  काज बनाबू।
जौं  पोषय  छी  द्वेष  हृदय  मे, किस्मत  अपन  जराबू।
सिर्फ विचारक संगम जीवन, सुख-दुख ओकर उधारी।।
सुगना! खोता -----

ई  दुनिया  भगवानक  नगरी, बनिकय  निर्गुण  ताकू।
दोसर  के  दुर्गुण   सँ   पहिने,  अप्पन   दुर्गुण   ताकू।
सुमन चलू नित अहि रस्ता पर, नहि बुझियौ लाचारी।।
सुगना! खोता -----

जिनगी छी पाठशाला

जतबे  भेटल  यै  शिक्षा, अपना केँ नित सम्हारू
दूषित  कहीं  जौं  इच्छा,अपना  केँ नित सम्हारू 

असगर जीयब  कठिन अछि, परिवार के जरूरी
जीवन  सतत  परीक्षा, अपना  केँ  नित  सम्हारू 

सम्बन्ध  सब  बढ़ाबथि, किछु  मंथरा  के कारण 
सद्भाव   केर  उपेक्षा,  अपना  केँ  नित  सम्हारू 

जिनगी सभक छै औसत, चौबीस हजार दिन के
पल-पल जगय शुभेच्छा, अपना केँ नित सम्हारू 

सुख - दुख सँ रोज सीखू, जिनगी छी पाठशाला 
एतबे  सुमन - अपेक्षा, अपना  केँ  नित  सम्हारू 

Saturday, April 26, 2025

साधो! संकट आयल भारी

साधो! संकट आयल भारी
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साधो! संकट आयल भारी।
मृत्यु ठाढ़ अछि द्वारे द्वारे, पसरि रहल महमारी।।
साधो! संकट आयल भारी।

अस्पताल  बेहाल   हाल  मे,  किछुओ  नहि  तैयारी।
अप्पन अप्पन श्वास गनय छथि, सकल वृद्ध नर-नारी।
एत्तेक लोक मरल, मरघट मे, मचलय मारामारी।
साधो! संकट आयल भारी।

डर पैसल आछि सभहक मन मे, खतरनाक बीमारी।
सब रोजगार छिनाओल कारण, बन्दी अछि सरकारी।
पिटलहुँ थाली आब पिटय के, छाती के अछि बारी।
साधो! संकट आयल भारी।

हम जीतब एहि बीमारी सँ, एखन अछि विस्तारी।
करू सुरक्षा अप्पन अप्पन, नीति जेहेन अछि जारी।
काज सुमन देत अपन भरोसा, नहि कोनो अधिकारी।
साधो! संकट आयल भारी।