पहिलुका समय मे गाम घरक लोक हैजा,प्लेग आदि संक्रामक बीमारी केर प्रवेश मात्रक सूचना सँ खूब डराबैत रहथि। समय सेहो कठिन छल। पुरनका लोक सब कहैत रहथिन्ह जे एकटा मुर्दा जराऽ कऽ आबिते आबिते दोसर तैयार। यानि एहि बीमारी मे बहुत लोकक मरनाय आम बात रहय ताहि दिन मे। ओहि पुरनका लोक सभहक मुँहे सुनल ई सत्य घटना आय हम लिखऽ जाऽ रहल छी।
मिथिला मे सहरसा जिलान्तर्गत चैनपुर गाम अछि। गामक लोक खूब शिक्षित, सहज आ विकासोन्मुख सेहो। चैनपुर मे मुख्यरूप सँ दू टा समानान्तर रोड पूरा गामक अगिला छोर तक एकर बिशेषता सेहो अछि। जाहि मे एक रोडक शुरूआत मे कुम्हार जातिक लोक बसल छथि। ताहि सँ सटले पंडित टोला अछि। मिथिला मे एखनो कुम्हार जातिक उपनाम (सरनेम) "पंडित" होईत अछि। बगले मे पंडित टोल जाहि मे मूर्खो आदमी केँ "पडित" कहबाक प्रचलन सेहो अछि। यानि पंडित जी के शुरूआत मे "पंडित" सम्बोधन आ कुम्हार केँ नामक अंतिम मे "पंडित"। खैर--
एक दिनक बात भोरे भोरे एक पंडित जी हाथ मे लोटा लेने बाह्य-भूमि तरफ निकलला। रास्ता मे हुनके उमरि के कुम्हार सड़के पर अपना काज मे मस्त छल।
पंडित (कुम्हार केँ सम्बोधित करैत) - की साढ़ू की हाल चाल?
पंडित - मूरखे रहि गेलऽ सब दिन?
कुम्हार - से की?
पंडित - सुनऽ। जखन किनको एक गाम मे विवाह होय छै तऽ वो एक दोसर केँ साढ़ू कहय छै कि नहि?
कुम्हार - हाँ।
पंडित - एक ट्रेन सँ जे सासुर जाय छथि एक दोसर केँ साढ़ू कहय छै कि नहि?
कुम्हार - जी हाँ कहय छै।
पंडित - आब तूहीं बताबऽ हमर कनिया आ तोहर कनिया एके हैजा मे मरलखिन्ह तऽ हम दुनु गोटय साढ़ू भेलिये कि नहि?