आन लोक केँ भेटल हेतन्हिं, हमरा नहि भेटल भगवान।।
धर्म-स्थल मे सगरो हलचल, देखल बहुतो आँखि मे छलछल।
जे छथि धर्मक बनल मुर्जना, रोज देखाबथि अप्पन छलबल।
भेद कियै ई जगत-पिता अछि, हम सब अपनहिं के सन्तान??
आन लोक केँ -----
कतेक बेर ई सुनल दुबारा, छथि सभहक भगवान सहारा।
घर - घर मे पूजन भगवन के, तैयो दुख मे लोक बेचारा।
परम-पिता ई कोना देखय छी, पिता-धर्म के नित अपमान??
आन लोक केँ -----
ज्ञान - बुद्धि - सत्काम अहाँ छी, जीवन-पूर्णविराम अहाँ छी।
दुखी सुमन के आस अहीं पर, निर्बल के बलराम अहाँ छी।
हे परमेश्वर कहुना करियौ, सभहक सुख - दुख एक समान??
आन लोक केँ -----
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