सुख-दुख के अनुभव सुमन, सबके अप्पन मीत।
जिनगी समझौता सतत, हार कही या जीत??
हार - जीत नहि तौलियो, दुनु के सम्मान।
मान हार के जे करत, वो जीतत श्रीमान।।
घर-घर मे झगड़ा - कलह, सगरो पसरल शोक।
खोता अपन उजाड़िकय, रहल खुशी के लोक।।
निर्बुद्धिया धिया - पुता, परचट जखने भेल।
वो घर मे तखने शुरू, उठा - पटक के खेल।।
अपना बच्चा पर रहय, सभहक किछु अरमान।
मातु-पिता वो शत्रु सम, जे सिखबथि अभिमान।।
हरदम घर मे रोकियौ, बिना वजह के चीख।
सामाजिक व्यवहार लय, बहुत जरूरी सीख।।
नीक बनत परिवार तेँ, निक्के रहत समाज।
तखने सभहक एक सँग, बाजत सुख के साज।।
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