सुगना! खोता अपन सम्हारी।
ताक - झाँक छोड़ू दोसर के, आदत अपन सुधारी।।
सुगना! खोता -----
जे सामाजिक नियम बनल अछि, पालन बहुत जरूरी।
रहबय कत्तऊ पर समाज सँग, जीयब अछि मजबूरी।
समाधान छै सब उलझन केर, मिलजुलि बैसि विचारी।।
सुगना! खोता -----
नेक सोच सँ डेग बढ़ाऽ कय, बिगड़ल काज बनाबू।
जौं पोषय छी द्वेष हृदय मे, किस्मत अपन जराबू।
सिर्फ विचारक संगम जीवन, सुख-दुख ओकर उधारी।।
सुगना! खोता -----
ई दुनिया भगवानक नगरी, बनिकय निर्गुण ताकू।
दोसर के दुर्गुण सँ पहिने, अप्पन दुर्गुण ताकू।
सुमन चलू नित अहि रस्ता पर, नहि बुझियौ लाचारी।।
सुगना! खोता -----
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