Wednesday, January 17, 2024

हमरा नहि भेटल भगवान

पंडित, ज्ञानी जहिना कहलन्हिं, तहिना केलहुँ पूजा ध्यान। 
आन लोक केँ भेटल हेतन्हिं, हमरा नहि भेटल भगवान।।

धर्म-स्थल मे सगरो हलचल, देखल बहुतो आँखि मे छलछल।
जे छथि धर्मक बनल मुर्जना, रोज देखाबथि अप्पन छलबल।
भेद कियै ई जगत-पिता अछि, हम सब अपनहिं के सन्तान??
आन लोक केँ -----

कतेक बेर ई सुनल दुबारा, छथि सभहक भगवान सहारा।
घर - घर मे पूजन भगवन के, तैयो दुख मे लोक बेचारा।
परमपिता ई कोना देखय छी, पिता-धर्म के नित अपमान??
आन लोक केँ -----

ज्ञान - बुद्धि - सत्काम अहाँ छी, जीवन-पूर्णविराम अहाँ छी।
दुखी सुमन के आस अहीं पर, निर्बल के बलराम अहाँ छी।
हे परमेश्वर कहुना करियौ, सभहक सुख - दुख एक समान??
आन लोक केँ -----

Sunday, August 21, 2022

मैथिलजन मे आस बनल

अष्टम सूची मे स्थान।
बढ़ल मैथिली मिथिला मान।
ई कारण जे मास प्रथम के दिवस आठ अछि खास बनल।
आओर मैथिली बढ़ती आगां, सभहक मन विश्वास बनल।

प्रमुख भाग मिथिला, बिहार मे, जतय उपेक्षा सरकारी।
मुदा झारखंड मान बढ़ेलक, भाषा खातिर हितकारी।
हक भेटत संघर्षक दम पर, मैथिलजन मे आस बनल।
आओर मैथिली -----

अप्पन अप्पन घर निहारू, साहिब,शिक्षक वा फौजी।
नेना भुटका सभहक घर मे, बाजय हिन्दी, आंगरेजी।
भेल मैथिली पढ़ि अधिकारी, घर मे रखियौ प्यास बनल।
आओर मैथिली -----

मैथिल खातिर बाहर, भीतर, एखनहुँ अछि संघर्ष बहुत।
राखू मान हृदय मिथिला केर, भेटत सुमन उत्कर्ष बहुत।
किछु विकास भेलय मिथिला केर, आगां रहत विकास बनल।
आओर मैथिली -----

जतबे अछि औकात करू

बेसी लोकक एहेन प्रार्थना, कृपा केर बरसात करू।
करियौ सभक भलाई लेकिन हमरे सँ शुरुआत करू।।

देवस्थल मे भीड़ बढ़ल पर नहि सुधार भेल दुनिया मे।
सामाजिक मूल्यक अवमूल्यन नित उतार भेल दुनिया में।
सफल प्रार्थना अपन बुराई पर मन सँ आघात करू। 
करियौ सभक -----

सभक बुराई देखि रहल छी, अपन बुराई कम नहि भेल।
रोज रोज नुकसान अपन ई, एहि बातो के गम नहि भेल।
उतरि केँ अप्पन अन्तर्मन में, अपने मन सँ बात करू।
करियौ सभक -----

बिना आचरण माला जपिकय, अपन समय बेकार केलहुँ।
सुमन सु-मन सँ अगर लोक के, मोनक नहि सत्कार केलहुँ 
मोल कोनो संकल्पक तखने, जतबे अछि औकात करू।
करियौ सभक -----

तऽ चुप्प रहू!

फागुन मे बरसय बस प्यार,
आपस मे देखियौ मनुहार।
दूर बसल जे प्रेमी, प्रियतम,
हुनको मन के सुनु पुकार।
जौं नहि सुनलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

उड़तय सगरो रंग, अबीर,
घर मे भेटत पूआ, खीर।
मास मिलन के फागुन सँगी,
राखू मन मे हरदम धीर।
जौं नहि रखलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

ढोल, मंजीरा के छै शोर,
भाँग पीबय पर सभहक जोर।
बूढ़ लोक मे जोश जखन,
उठियौ मन मारय हिलकोर।
जौं नहि उठलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

नुकाऽ चोराकऽ मोनक बात,
खुशी आँखि मे भेल बरसात।
फागुन के उपहार मिलन
आनि लियऽ घर मे सौगात।
जौं नहि अनलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

दिन फागुन के बड़ अनमोल,
एक, दोसर के खोलय पोल।
बौकू सब बाजय लागल,
सुमन बाजियौ अप्पन बोल।
जौं नहि बजलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

फगुआ रहत उधारी

सीता के सँग राम खेलावथि, गौरी सँग त्रिपुरारी।
गोकुल, मथुरा भटकथि राधा, कत्तय कृष्ण मुरारी।
आबू! फाग खेलय गिरिधारी।।

धरती पाटल रंग अबीर सँ, गगनो लाल लगैया।
कोयल के अछि बोल मनोहर, केहेन कमाल लगैया।
हर घर मे आ गली, सड़क पर, तानल अछि पिचकारी।
आबू! फाग -----

अछि उमंग मे बूढ़ लोक सब, हुनक जवानी देखू।
अप्पन प्रियतम के सँग हुनकर, प्रेम कहानी देखू।
राधा के मन बाधा किंचित, फगुआ रहत उधारी।
आबू! फाग -----

अटकन मटकन दहिया चटकन, राधा लगन उचारय।
हो फगुनाहट मिलन सुमन के, मन मे अगन जराबय।
लोक लाजवश चुप छथि राधा, फागुन के दिन भारी।
आबू! फाग -----

कौवा कुचरै आँगन

कान्हा! फागुन मास सुहावन।
ठंढ, गरम समतूल एहेन जे, पल पल लागै पावन।‌।
कान्हा! फागुन -----

हरियर लता, गाछ पर सगरो, नव-पल्लव के छाजन।
रंग बिरंगक पुष्प सुगंधित, जहिना चन्दन कानन।।
कान्हा! फागुन -----

होरी खेलय, दूर देश सँ, सभहक आबय साजन।
हमरो प्रीतम सम्भव औता, कौवा कुचरै आँगन।।
कान्हा! फागुन -----

तन मन वास मदन के एहेन, सब लागय मनभावन।
दूर सुमन जे पिया सँ हुनके, आंखि सँ बरसै सावन।।
कान्हा! फागुन -----

हम चुनबय एहेन प्रधान

हम चुनबय एहेन प्रधान, जे गामक नाम करत।
आऊर देत नया पहचान, जे गामक नाम करत।।

शुरुआती दिन केर मुखिया, दुख दूर केलन्हिं जे दुखिया।
फेर चलन बदलि गेल एहेन, मुखिया के सँगी सुखिया।।
पहिने सन लौटय शान, जे गामक नाम करत।
हम चुनबय -----

अछि असल जरूरत जिनका, हो मदद उचितन हुनका।
लगुआ भगुआ केँ लागय, किछु समय समय पर ठुनका।
फेर निकलत नीक निदान, जे गामक नाम करत।
हम चुनबय -----

हो सोच मे जिनका शिक्षा, नैतिक मूल्यक हो दीक्षा।
आ स्वास्थ्य केन्द्र मे डाक्टर, करय रोगक नित्य परीक्षा।
अछि सब सुमनक अरमान, जे गामक नाम करत।
हम चुनबय -----