Sunday, August 21, 2022

मैथिलजन मे आस बनल

अष्टम सूची मे स्थान।
बढ़ल मैथिली मिथिला मान।
ई कारण जे मास प्रथम के दिवस आठ अछि खास बनल।
आओर मैथिली बढ़ती आगां, सभहक मन विश्वास बनल।

प्रमुख भाग मिथिला, बिहार मे, जतय उपेक्षा सरकारी।
मुदा झारखंड मान बढ़ेलक, भाषा खातिर हितकारी।
हक भेटत संघर्षक दम पर, मैथिलजन मे आस बनल।
आओर मैथिली -----

अप्पन अप्पन घर निहारू, साहिब,शिक्षक वा फौजी।
नेना भुटका सभहक घर मे, बाजय हिन्दी, आंगरेजी।
भेल मैथिली पढ़ि अधिकारी, घर मे रखियौ प्यास बनल।
आओर मैथिली -----

मैथिल खातिर बाहर, भीतर, एखनहुँ अछि संघर्ष बहुत।
राखू मान हृदय मिथिला केर, भेटत सुमन उत्कर्ष बहुत।
किछु विकास भेलय मिथिला केर, आगां रहत विकास बनल।
आओर मैथिली -----

जतबे अछि औकात करू

बेसी लोकक एहेन प्रार्थना, कृपा केर बरसात करू।
करियौ सभक भलाई लेकिन हमरे सँ शुरुआत करू।।

देवस्थल मे भीड़ बढ़ल पर नहि सुधार भेल दुनिया मे।
सामाजिक मूल्यक अवमूल्यन नित उतार भेल दुनिया में।
सफल प्रार्थना अपन बुराई पर मन सँ आघात करू। 
करियौ सभक -----

सभक बुराई देखि रहल छी, अपन बुराई कम नहि भेल।
रोज रोज नुकसान अपन ई, एहि बातो के गम नहि भेल।
उतरि केँ अप्पन अन्तर्मन में, अपने मन सँ बात करू।
करियौ सभक -----

बिना आचरण माला जपिकय, अपन समय बेकार केलहुँ।
सुमन सु-मन सँ अगर लोक के, मोनक नहि सत्कार केलहुँ 
मोल कोनो संकल्पक तखने, जतबे अछि औकात करू।
करियौ सभक -----

तऽ चुप्प रहू!

फागुन मे बरसय बस प्यार,
आपस मे देखियौ मनुहार।
दूर बसल जे प्रेमी, प्रियतम,
हुनको मन के सुनु पुकार।
जौं नहि सुनलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

उड़तय सगरो रंग, अबीर,
घर मे भेटत पूआ, खीर।
मास मिलन के फागुन सँगी,
राखू मन मे हरदम धीर।
जौं नहि रखलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

ढोल, मंजीरा के छै शोर,
भाँग पीबय पर सभहक जोर।
बूढ़ लोक मे जोश जखन,
उठियौ मन मारय हिलकोर।
जौं नहि उठलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

नुकाऽ चोराकऽ मोनक बात,
खुशी आँखि मे भेल बरसात।
फागुन के उपहार मिलन
आनि लियऽ घर मे सौगात।
जौं नहि अनलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

दिन फागुन के बड़ अनमोल,
एक, दोसर के खोलय पोल।
बौकू सब बाजय लागल,
सुमन बाजियौ अप्पन बोल।
जौं नहि बजलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

फगुआ रहत उधारी

सीता के सँग राम खेलावथि, गौरी सँग त्रिपुरारी।
गोकुल, मथुरा भटकथि राधा, कत्तय कृष्ण मुरारी।
आबू! फाग खेलय गिरिधारी।।

धरती पाटल रंग अबीर सँ, गगनो लाल लगैया।
कोयल के अछि बोल मनोहर, केहेन कमाल लगैया।
हर घर मे आ गली, सड़क पर, तानल अछि पिचकारी।
आबू! फाग -----

अछि उमंग मे बूढ़ लोक सब, हुनक जवानी देखू।
अप्पन प्रियतम के सँग हुनकर, प्रेम कहानी देखू।
राधा के मन बाधा किंचित, फगुआ रहत उधारी।
आबू! फाग -----

अटकन मटकन दहिया चटकन, राधा लगन उचारय।
हो फगुनाहट मिलन सुमन के, मन मे अगन जराबय।
लोक लाजवश चुप छथि राधा, फागुन के दिन भारी।
आबू! फाग -----

कौवा कुचरै आँगन

कान्हा! फागुन मास सुहावन।
ठंढ, गरम समतूल एहेन जे, पल पल लागै पावन।‌।
कान्हा! फागुन -----

हरियर लता, गाछ पर सगरो, नव-पल्लव के छाजन।
रंग बिरंगक पुष्प सुगंधित, जहिना चन्दन कानन।।
कान्हा! फागुन -----

होरी खेलय, दूर देश सँ, सभहक आबय साजन।
हमरो प्रीतम सम्भव औता, कौवा कुचरै आँगन।।
कान्हा! फागुन -----

तन मन वास मदन के एहेन, सब लागय मनभावन।
दूर सुमन जे पिया सँ हुनके, आंखि सँ बरसै सावन।।
कान्हा! फागुन -----

हम चुनबय एहेन प्रधान

हम चुनबय एहेन प्रधान, जे गामक नाम करत।
आऊर देत नया पहचान, जे गामक नाम करत।।

शुरुआती दिन केर मुखिया, दुख दूर केलन्हिं जे दुखिया।
फेर चलन बदलि गेल एहेन, मुखिया के सँगी सुखिया।।
पहिने सन लौटय शान, जे गामक नाम करत।
हम चुनबय -----

अछि असल जरूरत जिनका, हो मदद उचितन हुनका।
लगुआ भगुआ केँ लागय, किछु समय समय पर ठुनका।
फेर निकलत नीक निदान, जे गामक नाम करत।
हम चुनबय -----

हो सोच मे जिनका शिक्षा, नैतिक मूल्यक हो दीक्षा।
आ स्वास्थ्य केन्द्र मे डाक्टर, करय रोगक नित्य परीक्षा।
अछि सब सुमनक अरमान, जे गामक नाम करत।
हम चुनबय -----

साझा रोटी, भात करब

अप्पन प्रश्न उठायब पहिने, हम शासक सँ बात करब
हुनक निकम्मापन पर चिकरब, कानूनन उत्पात करब

देश, प्रदेश या गामक शासक, किनका लोकक चिन्ता छै?
निज सुविधा अर्जन मे शासक, ओकरे पर आघात करब

सेवक लोक चुनय छथि जिनका, वो बुझय शासक बनलहुँ 
हुनका रस्ता पर आनय लय, बिन मौसम बरसात करब

जाति, धरम आ गोत्र, मूल मे, बाँटल छी हम साजिश मे
एहि बन्धन केँ तोड़य खातिर, साझा रोटी, भात करब

सुविधा, शिक्षा, स्वास्थ लोक केँ, भेटय ई कोशिश रहतय
आजीवन संघर्ष सुमन केर, जत्तेक अछि औकात करब

राम खेत मे, खरिहानो मे

राम खेत मे, खरिहानो मे, अहाँ घुमय छी मंदिर मे।
संत-वचन ओ घट घट वासी, कियै तकय छी मंदिर मे?

राम नाम हम सब बाजय छी, भेल अधर्मक राज कोना?
नीति धरम के रस्ता पर हम, सोचू करबय काज कोना?
काज छोड़िकय काशी, मथुरा, हम भटकय छी मंदिर मे!
राम खेत में -----

बिना आचरण, भक्ति-भाव के, पहिरल सगरे खोल भेटय।
जग मे केवल जन-सेवा सँ, भक्ति-भाव केर मोल भेटय।
समय के सँग सँग टाका, पैसा, व्यर्थ करय छी मंदिर मे।
राम खेत मे -----

विद्या के मंदिर जर्जर अछि, मंदिर के श्रृंगार एतय।
किछु दिन हाल रहत जौं एहेने, बनत सुमन ई भार एतय।
लोक-जागरण केन्द्र छी मंदिर, हम जगबय छी मंदिर मे।
राम खेत मे -----

दुनु केलक दुखद कमाल

केहेन भेल गणतंत्रक हाल?
दिल्ली मे जे मचल बबाल।

दोष कृषक के या सरकारी?
दुनु केलक दुखद कमाल।

मूलमंत्र अछि हमर अहिंसा,
निश्चित ओहि पर उठत सवाल।

हम नहि राखब तऽ के राखत?
देश, समाजक रोज खियाल।

हालत बिगड़ल एहेन देश के,
लोकतंत्र लागय बेहाल।

दुनिया भरि मे लोकतंत्र के,
केवल ठाढ़ एखन कंकाल।

कर्तव्यक सँग प्रश्न उठाबू,
शुरू सुमन करियौ तत्काल।

सभहक प्रतिभा खास

मूल्यवान सब जगत मे, सभहक प्रतिभा खास।
कियै उड़ाबय छी कियो, कमजोरक उपहास।।

पैघ सोच के लोक सब, करय पैघ सन काज।
अछि विचार मे ही छुपल, जीवन के सब राज।।

धन दौलत साधन सदा, बुझियो नहि भगवान।
आजुक निर्धन काल्हि केँ, सम्भव हो धनवान।।

सुखी हुनक जीवन तखन, जौं सम्बन्धक मोल।
सुख दुख मे जे सदरिखन, बाजथि मीठा बोल।।

ग्रन्थ बहुत, गुरुओ बहुत, बाँटि रहल उपदेश।
मुदा आचरण के बिना, नहि बदलत परिवेश।।

नीक बात बिनु आचरण, बाजब छी बेकार।
सुनियोकय सब नहि सुनत, करैत रहू तकरार।।

बात बुझू वा नहि बुझू, नहि कोनो फरियाद।
प्रश्न सुमन के स्वयं सँ, अपनहि सँ सम्वाद।।

जागैत रहल नीनो मे चेतना हमर

 हम गीत जतेक लिखलहुँ छी वेदना हमर
जीवन मे भेल बहुते अवहेलना हमर
तैयो सुमन जीबैत रहल होश जोश मे
जागैत रहल नीनो मे चेतना हमर

सोचू कनेक मन मे किनक बात सुनय छी
सुनलाक बाद राह अपन मन सँ चुनय छी
भेलहुँ असफल तऽ देलहुँ दोसरे केर दोष
असगर मे बैसि रोज अपन माथ धुनय छी

जिनगी लगल यै बन्धक सबके पड़ोस मे
वो लोक भेटय कम्मे बिल्कुल जे होश मे
बुधियार स्वयं केँ हम साबित करैत छी
ऊपर सँ हँसी नकली भीतर छी रोष मे

लागैया जिनगी नाटक सब खेल रहल छी
सोचू जीबय छी सुख सँ या झेल रहल छी
भेटत जे बेसी लोक बात दु:ख के करत
लागैया अपन जिनगी बस ठेल रहल छी

धनिक बनल विद्वान

टाका! छी आजुक भगवान।
पूछत क्यो नहि कोना अरजल, की की केलहुँ निदान।।
टाका! छी आजुक -----

जत्तेक टाका पास मे जिनका, ओतबे लोक महान।
ई कारण जे सब हुनके सँ, बनाऽ रहल पहचान।।
टाका! छी आजुक -----

ताकय छी घर भेटल कम्मे, सगरो भेटल मकान।
पढ़ल लिखल विद्वान कात मे, धनिक बनल विद्वान।।
टाका! छी आजुक -----

दूर सत्य सँ हम सब भेलहुँ, कानथि बैसि सुजान।
हँसी ओढ़लहुँ मुदा हेरायल, सुमन सहज मुस्कान।।
टाका! छी आजुक -----

चारू तरफ शिकारी छै

अपने टा मुख्तारी छै
जीबय के लाचारी छै

बेसी लागल परनिंदा मे 
कम्मे लोक विचारी छै

दोसरो के भी बात सुनु
कियै लागय भारी छै 

सब ताकय कोना लूटी
चारू तरफ शिकारी छै

ज्ञानक मान दियौ सबकेँ 
नर चाहे ओ नारी छै

जिनगी तऽ कटबे करतै
सबकेँ अपन सवारी छै

कविता लिखता रोज सुमन
बहुत पैघ बीमारी छै

करियौ जोड़य के जतन

परिजन के सँग मिलिकय जीबी, सभहक आछि तैयारी।
देखलहुँ एक्के छत के नीचा, अछि विभेद बड़ भारी।
भैया! सोचू मोने मोन, करियौ जोड़य के जतन।।

स्नेह भेटल बचपन मे तखने, हम सब आगां बढ़लहुँ।
अप्पन क्षमता, प्रतिभा के बल, शिखर अपन सब चढ़लहुँ।
ओ परिजन सब आब लगैया, कियै पैघ दुश्मन?
भैया! सोचू मोने मोन ------

मातु पिता के त्याग समर्पण, कोना दाम चुकायब?
अहाँ के कारण कष्ट जौं हुनका, कत्तय मुँह छुपायब?
बाहर खूब लुटाबी पैसा, भाय, बहिन ठनठन।
भैया! सोचू मोने मोन -----

कलम उठेलहुँ फर्ज बूझिकय, प्रतिदिन लोक जगाबी।
बूझब नहि उपदेश कोनो छी, भोगल सत्य सुनाबी।
घर घर के ई हाल देखिकय, घायल भेल सुमन।
भैया! सोचू मोने मोन -----

अपना पर उपकार करय छी

हमहीं टा छी ठीक जगत मे, नित्य एहेन व्यवहार करय छी
किछु भरोस लोको पर करियौ, व्यर्थ कियै तकरार करय छी

सभहक ढंग जीबय केर अप्पन, छुपल जाहि मे अनुभव नूतन
जौं सीखय छी हम बच्चो सँ, अपना पर उपकार करय छी

घर के मुर्गी दालि बराबर, कहबी केर उपयोग सरासर
मोल-हीन घर के प्रतिभा केँ, हम सब बारम्बार करय छी

कानय छी भगवान पास मे, दुख हरता बस एहि आस मे
कर्मभूमि छी धरती अप्पन, कर्मे सँ इन्कार करय छी

हम खोजय छी गलती बाहर, सुमन जे पैसल अपने अंदर
जीवन हुनक सफल हेतय जौं, दोष अपन स्वीकार करय छी

नूतन रोज विचार बनाबी

चलू, नया संसार बनाबी
दुश्मन तक केँ यार बनाबी

सिकुड़ि रहल अपनापन देखू
किछुओ किछ विस्तार बनाबी

अप्पन दोषक नित्य परीक्षण
दोसर केँ बुधियार बनाबी

छोड़ू अनुभव तीत-मीठ के
नूतन रोज विचार बनाबी

दया सँ बेसी प्रेम जरूरी
बस प्रेमक आधार बनाबी 

भ्रमवश छोट बुझि किनको पर
कहियो नहि अधिकार बनाबी

बच्चा सहित सुमन परिजन पर
नित्य नित्य बस प्यार बनाबी

आँखिक पानि सुखाओल कोना?

बचपन समय बिताओल कोना?
कियो शिखर पर आओल कोना?

घर, पड़ोस मे अनुभव बाँटू
अप्पन कदम बढ़ाओल कोना?

वर्तमान, झाँकी इतिहासक
के, की, कखन सिखाओल कोना?

जिनके सँग रहल छी हुनके
आँखिक पानि सुखाओल कोना?

परिजन-प्रेम मूल छी घर के
परिजन आगि लगाओल कोना?

टूटल घर तऽ सुख नहि बाँचत
बूझियौ चैन लुटाओल कोना?

नहि उपदेश बुझु अनुभव केर
गजल सुमन ई गाओल कोना?

हम प्रतीक्षित ठाढ़ छी

हुनक  स्वागत, आगमन  मे, हम प्रतीक्षित ठाढ़ छी
भेद  केलन्हिं  जे  स्वजन मे, हम प्रतीक्षित ठाढ़ छी

गाम केर  हर वर्ण मे छल, आत्मिक संबंध छल यौ
आय आपस  केर जलन मे, हम प्रतीक्षित ठाढ़ छी

आदमियत केर  बिना छथि, आदमी लागल एखन
एक  दोसर  केर  दमन  मे, हम  प्रतीक्षित ठाढ़ छी

गाम  सँग  परिवार  टूटल,  विश्व - ग्रामक  मोह  मे
मस्त  सब  अपने भजन मे, हम प्रतीक्षित ठाढ़ छी

प्रेम  आपस  मे  जौं  बाँचत, ई  जगत  सुन्दर रहत
नित सुमन लागल जतन मे, हम प्रतीक्षित ठाढ़ छी

नीक लोक केर बड़ अभाव छै

पोस्टरबाजी केर प्रभाव छै
आबयवाला फेर चुनाव छै

वोट देल जाय एहि बेर किनका
भेटय, एक सँ एक सुझाव छै

लागत गप सँ एक्के छी हम
सभक मोन मे किछु दुराव छै

गाम, देश, कोनो चुनाव हो
नीक लोक केर बड़ अभाव छै

क्षणिक लाभ वोटर केँ जत्तऽ
ताहि तरफ हुनकर बहाव छै

खा कऽ, पी कऽ छुटभैया केर
भरि चुनाव मे अलग ताव छै

जागू सुमन जगाबू सब केँ 
न्यायपूर्ण मानव स्वभाव छै

पुनः राम आबथि सासुर मे

ज्ञानक दीप जरय घर घर मे, सभहक सुखमय जीवन हो
संस्कार सँ पूरित मैथिल, सकल जगत मे भगवन हो

विद्यापति, मंडन केर धरती, बिनु साहित्यक लागय परती
अपसंस्कृति सँ दूर सदरिखन, जनक-सुता केर आँगन हो
ज्ञानक दीप जरय -----

अपने सँ घोषित बुधियारी, खूब बढ़ल अछि ई बीमारी
द्वेष राग सँ दूर स्वजन हो, सभहक सज्जन परिजन हो
ज्ञानक दीप जरय -----

टाका पैसा खूब कमेलहुँ, भाव सुकोमल ओतेक गमेलहुँ,
जागय नहि पशुता समाज मे, ठीक सँ एहि पर चिन्तन हो
ज्ञानक दीप जरय -----

व्यथित सुमन केर मोनक गीता, गाबि सुनेलहुँ मैया सीता
पुनः राम आबथि सासुर मे, स्वागत मे मैथिलजन हो
ज्ञानक दीप जलता -----

मौसम रोज बदलबे करतय

जे सूतल से जगबे करतय
राज-काज सब करबे करतय

पहिल प्रश्न रोटी अछि जग मे
घर सँ लोक निकलबे करतय

कर्मक फल सँ के बाँचल अछि
करब नीक, यश बचबे करतय

आय अन्हरिया काल्हि ईजोरिया
मौसम रोज बदलबे करतय

संस्कार छूटल अप्पन तऽ 
चैन हिया के जरबे करतय

नेना भुटका सुख सँ जीबय
अपन स्वप्न सब गढ़बे करतय

सुमन बढ़ू,बस नेक सोच सँ 
शेष लोक भी बढ़बे करतय

एक दुनिया मे हमहीं टा बुधियार छी

हम बकलेल छी, अहाँ होशियार छी
एक दोसर लय जीबय के आधार छी

दुख सँगहि चलत सुख भेटय नहि भेटय
दुख सँ लड़ियो कें जीबय लऽ तैयार छी

किछु हँसैत लोक सँ गप्प करियौ, बुझू
दुख छुपाबय के मुस्कान हथियार छी

काटि लेलहुँ हम जिनगी भरम पोसिकय
एक दुनिया मे हमहीं टा बुधियार छी

कने किचकिच तऽ आपस मे हेबे करत
ई तऽ जीवन-कला केर विस्तार छी

तीत मीठक खजाना ई जिनगी हमर
दुख जीयब सिखौलक, दुखे यार छी

ओढ़िकय हम हँसी चलू आगां बढ़ी
अहाँ श्यामल के मोनक सुमन-प्यार छी

हम कही वा नञि कही

सोचियो अपने सँ मन मे, हम कही वा नञि कही
भेद कियै अछि स्वजन मे, हम कही वा नञि कही

एक दोसर सँ कही हम, काज निक्के टा केलहुँ
छी मुदा झूठक व्यसन मे, हम कही वा नञि कही

स्वार्थवश नित प्रार्थना सँग नित खुशामद हम करी
बात त्यागक बस कथन मे, हम कही वा नञि कही

मूल्यबोधक बात छूटल, धन प्रमुख भेलय एखन
राति दिन सब एहि जतन मे, हम कही वा नञि कही

अगिला पीढ़ी संस्कारित, भेल नहि तऽ सोचियौ
आगि लगि जायत सुमन मे, हम कही वा नञि कही

आय सीता केर उपेक्षा

आपसी सहयोग केर गप, हम करय छी राति दिन
पानि, तेलक मेल एहेन, सँग रहय छी राति दिन

सँग सीता केर भेटल तऽ, राम पूजित विश्व मे
आय सीता केर उपेक्षा, हम देखय छी राति दिन

मीठ बोली, ज्ञान अर्जन, अछि हमर पहचान यौ
वो छुटल बस ताहि कारण, दुख सहय छी राति दिन

ज्ञान केर सम्मान तखने, लोक हित मे काज हो
लोक बड़का बनिकय स्वारथ, मे बहय छी राति दिन

आचरण, कारण सुमन जे, याद किनको हम करी
दोष देखिकय आँखि अप्पन, हम मुनय छी राति दिन

पोखरि सहित ईनार निपत्ता

प्रेम-पूर्ण व्यवहार निपत्ता
सहयोगी परिवार निपत्ता

गप्पक खेती बड़ उपजाऊ
जीबय के आधार निपत्ता

आपस मे झगड़ा के कारण
भेल सभक अधिकार निपत्ता

गली-सड़क तक दाबि लेने छी
पोखरि सहित ईनार निपत्ता

लोक समाजिक कतऽ हेरायल
बचपन के सब यार निपत्ता

घर सँ बाहर बच्चा सभहक
पढ़यबला दुआर निपत्ता

सुमन चेतना-दीप जराबय
रोकू, भेल विचार निपत्ता

Thursday, August 18, 2022

घर घर लोक जगायब हम

सूखल धरती मे कोशिश कऽ, जल केर स्रोत बहायब हम
अहाँ अन्हरिया जतेक बढ़ेबय, ओतबे दीप जरायब हम

रूप मनुक्खक हम्मर सभहक, पशुता छूटल नहि एखनहुँ 
कोना कम हेतय वो पशुता, घर घर लोक जगायब हम

निज स्वारथ मे सबटा माटि, बनि कोदारि सब जमा करय
खुरपी बनिकय आस पास केर, स्वारथ केँ सहलायब हम

असगर खुशी अगर कतबो छी, दुई कौड़ी के मोल ओकर
कृष्ण कन्हाई नहि छी तैयो, किछु किछु खुशी लुटायब हम

शास्त्र मे वर्णित अपन काज सँ, लोक, देवता बनय सुमन
मृत्यु काल तक नेक कर्म सँ, जीवन सफल बनायब हम

जय जय सीताराम कहू

भेल अचानक तालाबंदी,
जय जय सीताराम कहू
काजो पर लागल पाबंदी,
जय जय सीताराम कहू

          बिना काज के बढ़ल गरीबी,
          घर घर मे झगड़ा बढ़लय
          सामाजिक मूल्यक नसबंदी,
          जय जय सीताराम कहू

नहि आयल कालाधन कोनो,
नहि कत्तऊ आतंक रुकल
तखन कियैक भेलय नोटबंदी,
जय जय सीताराम कहू

          हिनकर शासन, हुनकर शासन,
          सब कियो लुटलक लोके केँ 
          गद्दी खातिर जुगलबंदी,
          जय जय सीताराम कहू

सत्ता के गुणगान छोड़िकय,
सुमन पूछियौ प्रश्न अपन
तोड़ू अप्पन मोनक बंदी,
जय जय सीताराम कहू

गीत जिनगीक रोज गाबय छी

किछ पाँति लिखय छी काटय छी
गीत जिनगीक रोज गाबय छी

खेल नेनपन मे जे सीखेने छल
आब हुनके एखन खेलाबय छी

भीड़ चहुँओर अछि मनुक्खक के
लोक अप्पन ओहि मे ताकय छी

ज्ञान एत्तऽ कहू छै कम किनका
तैयो जबरन हमहुँ सुनाबय छी

चोरि घूसखोरी कऽ धनिक भेलाऽ
हुनके जयकार बस लगाबय छी

मेल आपस के गेल खटाई मे
तैयो हम नित कलह बढ़ाबय छी

आब कत्तेक दिना सुमन सूतब
आबिकय रोज हम जगाबय छी

लेकिन अप्पन गाम जगाबू

रहू कतहु आ कतहु कमाबू।
लेकिन अप्पन गाम जगाबू।।

पढ़ल लिखल सब बाहर गेल।
सचमुच गाम पिछड़िये गेल।
अक्सर बोली सुनबय टेढ़।
काज बिना बस गप्पक ढेर।
अनुशासन केर घोर अभाव।
टेढ़-बोलिया केर बढ़ल प्रभाव।
कोशिश करू, विराम लगाबू।
लेकिन अप्पन -----

मरनी हरनी, व्याहक भोज।
ओहि पर चर्चा सुनबै रोज।
बहुत लोक केँ छन्हिं अवकाश।
झुण्ड बना कऽ खेलथि ताश।
महिला सभहक हाल, बेहाल।
कम्मे लोक रखय छथि ख्याल।
मिथिला, मैथिल नाम बचाबू।
लेकिन अप्पन -----

सुनल, सुनाओल नहि छी बात।
भोगल सत्य, हृदय आघात।
गाम बचत तऽ बचतय देश।
संस्कारित भेटत परिवेश।
मिथिला संस्कृति केर पहचान।
डेग डेग पर पसरल ज्ञान।
ज्ञान सुमन अविराम बढ़ाबू।
लेकिन अप्पन -----