Sunday, August 21, 2022

तऽ चुप्प रहू!

फागुन मे बरसय बस प्यार,
आपस मे देखियौ मनुहार।
दूर बसल जे प्रेमी, प्रियतम,
हुनको मन के सुनु पुकार।
जौं नहि सुनलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

उड़तय सगरो रंग, अबीर,
घर मे भेटत पूआ, खीर।
मास मिलन के फागुन सँगी,
राखू मन मे हरदम धीर।
जौं नहि रखलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

ढोल, मंजीरा के छै शोर,
भाँग पीबय पर सभहक जोर।
बूढ़ लोक मे जोश जखन,
उठियौ मन मारय हिलकोर।
जौं नहि उठलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

नुकाऽ चोराकऽ मोनक बात,
खुशी आँखि मे भेल बरसात।
फागुन के उपहार मिलन
आनि लियऽ घर मे सौगात।
जौं नहि अनलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

दिन फागुन के बड़ अनमोल,
एक, दोसर के खोलय पोल।
बौकू सब बाजय लागल,
सुमन बाजियौ अप्पन बोल।
जौं नहि बजलहुँ तऽ चुप्प रहू!!

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