Thursday, August 18, 2022

घर घर लोक जगायब हम

सूखल धरती मे कोशिश कऽ, जल केर स्रोत बहायब हम
अहाँ अन्हरिया जतेक बढ़ेबय, ओतबे दीप जरायब हम

रूप मनुक्खक हम्मर सभहक, पशुता छूटल नहि एखनहुँ 
कोना कम हेतय वो पशुता, घर घर लोक जगायब हम

निज स्वारथ मे सबटा माटि, बनि कोदारि सब जमा करय
खुरपी बनिकय आस पास केर, स्वारथ केँ सहलायब हम

असगर खुशी अगर कतबो छी, दुई कौड़ी के मोल ओकर
कृष्ण कन्हाई नहि छी तैयो, किछु किछु खुशी लुटायब हम

शास्त्र मे वर्णित अपन काज सँ, लोक, देवता बनय सुमन
मृत्यु काल तक नेक कर्म सँ, जीवन सफल बनायब हम

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