Tuesday, July 1, 2025

ताक-झाँक छोड़ू दोसर के

सुगना! खोता अपन सम्हारी। 
ताक - झाँक  छोड़ू  दोसर  के,  आदत  अपन  सुधारी।।
सुगना! खोता -----

जे सामाजिक नियम बनल अछि, पालन बहुत जरूरी।
रहबय  कत्तऊ  पर  समाज सँग, जीयब अछि मजबूरी। 
समाधान छै सब उलझन केर, मिलजुलि बैसि विचारी।।
सुगना! खोता -----

नेक  सोच  सँ  डेग  बढ़ाऽ कय, बिगड़ल  काज बनाबू।
जौं  पोषय  छी  द्वेष  हृदय  मे, किस्मत  अपन  जराबू।
सिर्फ विचारक संगम जीवन, सुख-दुख ओकर उधारी।।
सुगना! खोता -----

ई  दुनिया  भगवानक  नगरी, बनिकय  निर्गुण  ताकू।
दोसर  के  दुर्गुण   सँ   पहिने,  अप्पन   दुर्गुण   ताकू।
सुमन चलू नित अहि रस्ता पर, नहि बुझियौ लाचारी।।
सुगना! खोता -----

जिनगी छी पाठशाला

जतबे  भेटल  यै  शिक्षा, अपना केँ नित सम्हारू
दूषित  कहीं  जौं  इच्छा,अपना  केँ नित सम्हारू 

असगर जीयब  कठिन अछि, परिवार के जरूरी
जीवन  सतत  परीक्षा, अपना  केँ  नित  सम्हारू 

सम्बन्ध  सब  बढ़ाबथि, किछु  मंथरा  के कारण 
सद्भाव   केर  उपेक्षा,  अपना  केँ  नित  सम्हारू 

जिनगी सभक छै औसत, चौबीस हजार दिन के
पल-पल जगय शुभेच्छा, अपना केँ नित सम्हारू 

सुख - दुख सँ रोज सीखू, जिनगी छी पाठशाला 
एतबे  सुमन - अपेक्षा, अपना  केँ  नित  सम्हारू