आय चौपाल मे गजानन बाबूक चेहरा किछु उखड़ल उखड़ल आ किछु गम्भीर सेहो बुझना गेल। कारण बुझबाक प्रयास केलहुँ तऽ किछु देर बाद बजलाह की कहू? जेहने अपना मिथिला मे मातृभाषा मैथिलीक दशा अछि किछु किछु ओहने हाल राज-भाषा (आयधरि संवैधानिक तौर राष्ट्र-भाषा नहि) हिन्दीक देखवा मे आबि रहल अछि। आय १४ सितम्बर यानि हिन्दी दिवस यानि हिन्दी केँ आजुक दिन सँ सरकारी तौर पर "राज-काजक भाषा" मानल गेल। सँगहि सँग तथाकथित हिन्दी-प्रेमीक एक अनवरत लड़ाय सेहो जे एक दिन हिन्दीओ कम सँ कम हिन्दुस्तान मे राष्ट्र-भाषा बनबे करत। बड़ा विचित्र स्थिति अछि। जहिना साल मे एक दिन हम सब मातृ-भाषा दिवस मनाकऽ अप्पन कर्तव्यक इतिश्री कऽ लय छी बस ओहने खेला राष्ट्रीय स्तर पर सेहो हर साल होइत अछि प्रायः देशक सब सरकारी कार्यालय मे।
गजानन बाबू पुनः बजलाह - अपना देश मे आजादीक बाद जतेक घोषित दिवस अछि सभहक एहने दशा अछि। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयन्ती आदि सनक राष्ट्रीय पर्वक दिन की होइत अछि? बस औपचारिकताक निर्वाह। आओर की? कार्यालयीय स्तर पर जिनक "ड्युटी" लागन्हि से जेबे करताह। या फेर जिनका किछु सम्मान वा पुरस्कारक सूचना भेटैत छन्हि सेहो जाइत छथि। शेष किनका की मतलब? ई सब तऽ एक अतिरिक्त छुट्टी आ आनन्दक दिन के अतिरिक्त किछु नहि। देश-प्रेम वा कोनो महापुरुषक प्रति प्रेम? ई बस हम सब भाषणे टा मे सुनि सकैत छी। सेहो ओहेन व्यक्तित्वक मुँह सँ जे जिनगी भरि देशक अहित कऽ अपने टा हित केलन्हि।
बात केँ आगू बढ़बैत गजानन बाबू कहलखिन्ह - आय पुनः हिन्दी-प्रेमक नाटक देखू। यत्र-तत्र कार्यक्रमक आयोजन होयत। संस्थागत रूप सँ अतिथि बजाओल जायत। जतऽ सुनब आ पढ़ब अन्य वक्ताक सँगे मुख्य वक्ताक लिखल भाषण मे हिन्दीक प्रति अगाध प्रेमक उद्गार भेटत। हाँ ई अलग बात अछि जे ओहि भाषण मे कतेको अवाँछनीय अंगरेजी शब्द सेहो भेट जाय तऽ आश्चर्यक कुनु बात नहि। सबसँ मजेदार बात ई जे जतेक लोक एहि हिन्दी दिवसक कार्यक्रम मे बढ़ि चढ़िकय भाग लय छथि आ हिन्दीक प्रति अपन अनुराग देखबय छथि हुनकर सभहक सबटा धिया-पुता अंगरेजी विद्यालय मे अनिवार्यरूपेण पढ़य छथि। राष्ट्री स्तर पर हर स्थापित दिवसक प्रति एहि नकली प्रेम-प्रदर्शन सँ गजानन बाबू आय किछु दुखी रहथि आ अन्त मे अपना स्कूलक हिन्दी दिवसक कार्यक्रम मे जिला शिक्षा अधीक्षक केर भाषणक मजेदार संस्मरण सुनौलन्हि। जिला शिक्षा अधीक्षकक हिन्दी दिवस पर बयान छलन्हि जे "आजकल लोगों की बहुत बैड हैबिट हो गई है कि हिन्दी बोलने में भी इन्गलिश वर्ड का यूज करते हैं।" अर्थात् अंगरेजी पर सवार हिन्दी-प्रेम।
गजानन बाबू पुनः बजलाह - अपना देश मे आजादीक बाद जतेक घोषित दिवस अछि सभहक एहने दशा अछि। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयन्ती आदि सनक राष्ट्रीय पर्वक दिन की होइत अछि? बस औपचारिकताक निर्वाह। आओर की? कार्यालयीय स्तर पर जिनक "ड्युटी" लागन्हि से जेबे करताह। या फेर जिनका किछु सम्मान वा पुरस्कारक सूचना भेटैत छन्हि सेहो जाइत छथि। शेष किनका की मतलब? ई सब तऽ एक अतिरिक्त छुट्टी आ आनन्दक दिन के अतिरिक्त किछु नहि। देश-प्रेम वा कोनो महापुरुषक प्रति प्रेम? ई बस हम सब भाषणे टा मे सुनि सकैत छी। सेहो ओहेन व्यक्तित्वक मुँह सँ जे जिनगी भरि देशक अहित कऽ अपने टा हित केलन्हि।
बात केँ आगू बढ़बैत गजानन बाबू कहलखिन्ह - आय पुनः हिन्दी-प्रेमक नाटक देखू। यत्र-तत्र कार्यक्रमक आयोजन होयत। संस्थागत रूप सँ अतिथि बजाओल जायत। जतऽ सुनब आ पढ़ब अन्य वक्ताक सँगे मुख्य वक्ताक लिखल भाषण मे हिन्दीक प्रति अगाध प्रेमक उद्गार भेटत। हाँ ई अलग बात अछि जे ओहि भाषण मे कतेको अवाँछनीय अंगरेजी शब्द सेहो भेट जाय तऽ आश्चर्यक कुनु बात नहि। सबसँ मजेदार बात ई जे जतेक लोक एहि हिन्दी दिवसक कार्यक्रम मे बढ़ि चढ़िकय भाग लय छथि आ हिन्दीक प्रति अपन अनुराग देखबय छथि हुनकर सभहक सबटा धिया-पुता अंगरेजी विद्यालय मे अनिवार्यरूपेण पढ़य छथि। राष्ट्री स्तर पर हर स्थापित दिवसक प्रति एहि नकली प्रेम-प्रदर्शन सँ गजानन बाबू आय किछु दुखी रहथि आ अन्त मे अपना स्कूलक हिन्दी दिवसक कार्यक्रम मे जिला शिक्षा अधीक्षक केर भाषणक मजेदार संस्मरण सुनौलन्हि। जिला शिक्षा अधीक्षकक हिन्दी दिवस पर बयान छलन्हि जे "आजकल लोगों की बहुत बैड हैबिट हो गई है कि हिन्दी बोलने में भी इन्गलिश वर्ड का यूज करते हैं।" अर्थात् अंगरेजी पर सवार हिन्दी-प्रेम।
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