Thursday, April 4, 2024

अहि दुनिया के काज की?

जिनका सँ छल खूब अपेक्षा,
अक्सर भेटल ओतऽ उपेक्षा,
सभहक सँग एहने किछु होय छै, सत्य बजय मे लाज की?
जौं दुनिया एहने बनि जायत, अहि दुनिया के काज की??

संत, मुनि, ग्रंथक भाषा मे, प्रेम बहुत अनमोल छै। 
लेकिन लोकक बात सुनु तऽ, विषधर सन के बोल छै। 
प्रेम आपसी जगबय खातिर, देब पुनः आवाज की?
जौं दुनिया एहने -----

आस पास मे एक दोसर के, उड़बय सब उपहास एखन।
सब सँ बेसी संकट मे अछि, आपस के विश्वास एखन। 
शिक्षा के सँग बढ़लय कटुता, अछि भीतर मे राज की?
जौं दुनिया एहने -----

नर नारी के मिलन के कारण, जन्म सुमन भेल धरती पर।
बिता रहल छी हम सब जीवन, हरित धरा के परती पर।
मधुर प्रेम केँ छोड़ि परस्पर, ताकि रहल छी प्याज की?
जौं दुनिया एहने -----

कान मे फुसिये फुसकय लोक

खटगर कखनहुँ मीठगर बोली
मुदा लगत नहि तीतगर बौली
परिजन पर अधिकार प्रेमवश 
बजैत रहय छी दीदगर बोली

          छोट, पैघ सभहक मकान छै 
          जेहेन सोच, तेहने दुकान छै
          बेसी लोक भेटत एहने जे 
          अपने सँ घोषित महान छै 

पेटक कारण गाम छुटि गेल
लीची, जामुन,आम छुटि गेल 
साहित्यिक - सेवा सँ जुड़लहुँ
अपन पुरनका नाम छुटि गेल

          बैसल - बैसल भकसय लोक 
          काज देखिकय घसकय लोक 
          नीक बात केर कम्मे चरचा 
          कान मे फुसिये फुसकय लोक 

कड़ुआ बोल सटीक लगैया 
उचित बात सब ठीक लगैया 
जे अधलाहा सेहो छी हमरे 
बात सुमन केर नीक लगैया 

रंगीला होरी फागुन मे

यमुना - तट पर कृष्ण कन्हाई, सरयू - तट रघुराई। 
सभहक अप्पन प्रीतम के सँग, जागि उठल तरुणाई। 
कोयल मीठगर तान सुनाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

खुशहाली घर - घर मे पसरल, सभहक मोन मतंगे।
जोश भरल पर होश बिना किछु, घूमि रहल अधनंगे।
साजन - सजनी रंग खेलाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

ताल - तलैया, जंगल - झाड़ी, सगरो भरल जवानी। 
जेम्हरे ताकब तेम्हरे भेटत, नूतन प्रेम कहानी।
फागुन रग रग मदन जगाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

रहथि कतहु मिथिलावासी पर, खूब मनाबथि होरी। 
फगुआ खेलय सब ताकय छथि, अप्पन अप्पन जोड़ी।
हमहूँ सुमन केँ अंक लगाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

पहलवान सब चढ़ल अखाड़ा

सोचू! किनका देबय वोट?
पहलवान सब चढ़ल अखाड़ा, कसिकय अपन लंगोट।।
सोचू! किनका -----

सब अपना केँ नीक कहय छथि, माँगथि अपन सपोर्ट।
बाजथि  सब  कियो  वो  गरीब  केँ, करता खूब प्रमोट।
सोचू! किनका -----

लोभ  बढ़ाबथि  लोक - वेद मे, बाँटि  बाँटिकय नोट।
एखन फँसब तऽ पाँच बरस तक, भेटत सिर्फ कचोट।।
सोचू! किनका -----

मदिरा, माछक सँग मे देखियौ, बँटा रहल अखरोट।
चौवनिया  मुस्की  सँ झाँपथि, अपना मोनक खोट।।
सोचू! किनका -----

हाथ जोड़िकय सब कियो औता, भाषण मे विस्फोट।
बूझि  सूझिकय  सुमन  अहाँ सब, करू वोट सँ चोट।।
सोचू! किनका -----

Wednesday, January 17, 2024

हमरा नहि भेटल भगवान

पंडित, ज्ञानी जहिना कहलन्हिं, तहिना केलहुँ पूजा ध्यान। 
आन लोक केँ भेटल हेतन्हिं, हमरा नहि भेटल भगवान।।

धर्म-स्थल मे सगरो हलचल, देखल बहुतो आँखि मे छलछल।
जे छथि धर्मक बनल मुर्जना, रोज देखाबथि अप्पन छलबल।
भेद कियै ई जगत-पिता अछि, हम सब अपनहिं के सन्तान??
आन लोक केँ -----

कतेक बेर ई सुनल दुबारा, छथि सभहक भगवान सहारा।
घर - घर मे पूजन भगवन के, तैयो दुख मे लोक बेचारा।
परमपिता ई कोना देखय छी, पिता-धर्म के नित अपमान??
आन लोक केँ -----

ज्ञान - बुद्धि - सत्काम अहाँ छी, जीवन-पूर्णविराम अहाँ छी।
दुखी सुमन के आस अहीं पर, निर्बल के बलराम अहाँ छी।
हे परमेश्वर कहुना करियौ, सभहक सुख - दुख एक समान??
आन लोक केँ -----

Sunday, August 21, 2022

मैथिलजन मे आस बनल

अष्टम सूची मे स्थान।
बढ़ल मैथिली मिथिला मान।
ई कारण जे मास प्रथम के दिवस आठ अछि खास बनल।
आओर मैथिली बढ़ती आगां, सभहक मन विश्वास बनल।

प्रमुख भाग मिथिला, बिहार मे, जतय उपेक्षा सरकारी।
मुदा झारखंड मान बढ़ेलक, भाषा खातिर हितकारी।
हक भेटत संघर्षक दम पर, मैथिलजन मे आस बनल।
आओर मैथिली -----

अप्पन अप्पन घर निहारू, साहिब,शिक्षक वा फौजी।
नेना भुटका सभहक घर मे, बाजय हिन्दी, आंगरेजी।
भेल मैथिली पढ़ि अधिकारी, घर मे रखियौ प्यास बनल।
आओर मैथिली -----

मैथिल खातिर बाहर, भीतर, एखनहुँ अछि संघर्ष बहुत।
राखू मान हृदय मिथिला केर, भेटत सुमन उत्कर्ष बहुत।
किछु विकास भेलय मिथिला केर, आगां रहत विकास बनल।
आओर मैथिली -----

जतबे अछि औकात करू

बेसी लोकक एहेन प्रार्थना, कृपा केर बरसात करू।
करियौ सभक भलाई लेकिन हमरे सँ शुरुआत करू।।

देवस्थल मे भीड़ बढ़ल पर नहि सुधार भेल दुनिया मे।
सामाजिक मूल्यक अवमूल्यन नित उतार भेल दुनिया में।
सफल प्रार्थना अपन बुराई पर मन सँ आघात करू। 
करियौ सभक -----

सभक बुराई देखि रहल छी, अपन बुराई कम नहि भेल।
रोज रोज नुकसान अपन ई, एहि बातो के गम नहि भेल।
उतरि केँ अप्पन अन्तर्मन में, अपने मन सँ बात करू।
करियौ सभक -----

बिना आचरण माला जपिकय, अपन समय बेकार केलहुँ।
सुमन सु-मन सँ अगर लोक के, मोनक नहि सत्कार केलहुँ 
मोल कोनो संकल्पक तखने, जतबे अछि औकात करू।
करियौ सभक -----