अपना दुख लय सब कनय छी,
किनकर के के बात सुनय छी?
जिनका जेहेन सुविधा भेटल,
राह अपन ओहने चुनय छी।
अपना सुखलय लोकक सुख केँ,
चाल चलिकय रोज छीनय छी।
गलत लोक चुनबय तऽ बुझियौ
दुख अप्पन अपने कीनय छी।।
जीबैत लोक बनय मुर्दा -सन,
गलती पर जौं आँखि मुनय छी।।
तखने टा संघर्ष सफल जौं,
अपन स्वप्न केँ रोज बुनय छी।।
नहि सुनलक नहि सुनता कियो,
सुमन व्यर्थ मे माथ धुनय छी।।
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