लोक भेटल सगरो बिचकाठी,
बात सँ चलबय बातक लाठी,
चालि - चलन सामूहिक बदलल, सामाजिक आधार में।
इज्जत लोक बचायत कोना, एहि बिगड़ल संसार में।।
नेनपन सँ अछि दोस्त गरीबी, दूर भेल जे लोक करीबी।
लोक-चेतना जगबय खातिर, छूटल कहिया हमर फकीरी?
कहियो काल खुशी मन हम्मर, लिखल छपय अखबार में।
इज्जत लोक -----
मातु-पिता केर अछि मजबूरी, धिया-पुता सँ बढ़लय दूरी।
भटकि रहल वो देश- विदेशो, उचित कहाँ भेटय मजदूरी?
मानव - मूल्य हेरायल कत्तय, सुविधा केर व्यापार मे??
इज्जत लोक -----
नीक नौकरी सभक सेहन्ता, बच्चा हो अफसर, अभियंता।
संस्कार अप्पन छूटल तऽ, नीक सुमन कोना क्यो बनता?
अपन आचरण केवल वश मे, किछुओ नहि अधिकार मे।।
इज्जत लोक -----
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