कोयल के तान मधुर, आ बोली फागुन मे
नहि ठण्ढ बहुत बेसी, नहि गरमी के चिन्ता
सब ताकि रहल अप्पन, हमजोली फागुन मे
सुख-दुख सँ बाहर के, अछि दर्द सभक अप्पन
वो पोटरी सुख - दुख के, हम खोली फागुन मे
धरती असमान रंगल, निज फगुआ दिन सगरो
सब हाथ मे रंगक छै, एक झोली फागुन मे
किछु नशा छै मौसम के, किछु रंग - अबीरो के
कियो ताकय झट भेटय, भंग-गोली फागुन मे
हम ढोल - मजीरा सँग, घूमय छी नगर - डगर
हर शहर मे मैथिल केर, एक टोली फागुन मे
अछि बाँचल कनियो टा, कनिये टा भाँग दियऽ
अछि सुनना सुमन के जौं, बकलोली फागुन मे
No comments:
Post a Comment