Sunday, April 22, 2012

कियो हमर संगी बनू

चलू ताकय छी मिलि भगवान, कियो हमर संगी बनू।
कतऽ भेटला छी फुसिये हरान, कियो हमर संगी बनू।।

कियो कहय कण-कण मे, कियो कहय मन मे।
कियो कहय गंगा मे, कियो पवन मे।
नहि भेटल कुनु पहचान, कियो हमर संगी बनू।।

सुमरय छी दुख मे, बिसरय छी सुख मे।
पूजा के भाव कतय, नामे टा मुख मे।
छथि भक्तो बहुत अनजान, कियो हमर संगी बनू।।

करू लोक सेवा, तखन भेटत मेवा।
लोक-हित काज करू, लोके छी देवा।
सुमन कत्तेक बनब नादान, कियो हमर संगी बनू।।

3 comments:

  1. श्यामल
    आशीर्वाद

    सुमरय छी दुख मे, बिसरय छी सुख मे।
    पूजा के भाव कतय, नामे टा मुख मे।
    बहुत सुंदर रचना
    एक एक शब्द भावों से कूट कूट कर भरा है
    बधाई स्वीकार कीजीये
    लेखनी की रोशनाई ना खत्म कीजीये

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