Wednesday, August 27, 2025

मोन जिनकर छै भोला

कतेक जग मे अनाथ, अहाँ केलहुँ सनाथ। 
मोन जिनकर  छै  भोला, हुनक भोलेनाथ।।

बुद्धि   जेहेन   साधन  ओहेन  करी  पूजा। 
कंकड़    केँ    शंकर   बनायत   के  दूजा?
दीन - दुखी   हम   सब   अहाँ   दीनानाथ।।
मोन जिनकर -----

श्रद्धा  सभक  अपन  अपन - अपन  देवा।
जिनकर    कियो   नहि   हुनक   महादेवा।
गरदनि   मे   नाग   केर   जगह  नागनाथ।।
मोन जिनकर -----

कालकूट   पीबि   अहाँ   दुनिया   बचेलहुँ।
शम्भू - कृपा  लय   हम    सुमन   चढ़ेलहु।
गौरी    केर    पूजन    केलहुँ    गौरीनाथ।।
मोन जिनकर -----

भाय-बहिन लिखबय कहिया?

पहिने मिथिला रहय महान। 
लिखल  गेल  बहुते श्रीमान।
मुदा  एखुनका  बदहाली केँ, भाय - बहिन लिखबय कहिया?
अध-नीना मे  व्यर्थ  पड़ल  छी, आब  कहू  जगबय कहिया??

रेल सड़क बिजली रोजगारक, केहेन हाल अछि मिथिला मे?
विद्यालय अछि  खस्ता  ओहने, अस्पताल अछि मिथिला मे।
काल-खण्ड जे अहाँ के सोझाँ, ओकर सत्य कहबय कहिया?
अध-नीना व्यर्थ -----

रोजी - रोटी  पहिल  जरूरत, ओहि  कारण  सँ गाम छुटल। 
युग - प्रभाव सँ ओहिठां बसलहुँ, अपन गाम सँ नाम छुटल।
नगर - शहर  मे  भेटत  मिथिला, कहू  गाम बसबय कहिया?
अध-नीना मे व्यर्थ -----

जे  भी अनुभव  अहाँ  के अप्पन, लेखन  मे  स्थान  दियौ। 
कटु सत्य  केँ  करू उजागर, छूटय किछु नहि ध्यान दियौ।
झाँपू  नहिं सच केँ बलजोरी, आब सुमन बजबय कहिया?
अध-नीना मे व्यर्थ -----

सुमन केँ लागत कोना लाज

पूजा - पाठ  करय  किछु रोजे, मंदिर मे कर - जोड़ी।
मुदा करय  छथि  वो समाज मे, बलजोरी, सूदखोरी।
एहेन भक्ति केर छै की काज?
सुमन केँ लागत कोना लाज??

मूरख  सोचय  नीक हमहीं  टा, बाकी सब अधलाहे। 
जे  आन्हर  एहेन  स्वारथ  मे,  लागथि  पूर्ण  बताहे।
सोच  सभक जौं  एहने हेतय, बाँचत कोना समाज?
सुमन केँ लागत -----

सब ओझरायल  मोबाइल मे, घर मे गप-शप कम्मे।
बेरोजगारो व्यस्त रहय छथि, शायद कियो निकम्मे!
घर  मे  बाघ बनय फुसियौंका, बाहर बिन-आवाज।
सुमन केँ लागत -----

रोज  जमाना  आगां  बढ़तय, नव तकनीक जरूरी। 
कहुना  प्रेम  बचय  आपस  के,  चाहे  जे  मजबूरी।
सभक सृजन  केर  मूल  प्रेम छी, आ जिनगी राज।
सुमन केँ लागत -----

कलम केँ बनकी लगायब न

जिनगी मे कतबो कड़की, कलम केँ बनकी लगायब न!
 कतबो कियो दियै घुड़की, कलम केँ बनकी लगायब न!!

मुँह देखि कोनाकय करबय प्रशंसा?
कमजोर लोक केर केहेन अनुशंसा?
भले बूढ़ कियो जवनकी, कलम केँ बनकी लगायब न!
जिनगी मे कतबो -----

जयकारा फुसियौंका कोना लगायब? 
मुखिया केर सोझाँ मे प्रश्नों उठायब।
डर सँ कोना घर - घुसकी, कलम कें बनकी लगायब न!
जिनगी मे कतबो -----

किछु कवि घूमि-घूमि पैसा कमाबय।
अहाँ घर बैसल छी माथा भुकाबय।
व्यंग केलनि सुमन सुनरकी, कलम केँ बनकी लगायब न!
जिनगी मे कतबो -----

सब हारय निज संताने सँ

कतबो   बलशाली   या  ज्ञानी,  सब  हारय   निज  संताने  सँ 
किछुए  दिन  किनको   मनमानी, सब  हारय  निज  संताने सँ

गुरुजन  के  बात  जवानी  मे,  जौं  तीत लगय  तखने  सोचब
कियो  कनिये  दिन राजा - रानी, सब  हारय  निज  संताने  सँ 

अछि धिया-पुता जौं नीक अपन, नहि बाजू अपने लोक कहत
चाहे  बात   हमर   नहिये  मानी,  सब  हारय  निज  संताने  सँ 

बिन  केने  अपेक्षा  किनको  सँ, सहयोग करू जे संभव अछि
नहि  देत  कियो  कौड़ी - कानी,  सब  हारय  निज  संताने सँ 

किंचित  घर  आबय  प्रतिद्वंदी,  बैसयलय  पीढ़ी  ऊँच  दियौ
अछि  याद  सुमन  मातुल - बानी, सब हारय निज संताने सँ 

लोक होशगर जे हुनका

कियै  कानय  छी बाजय छी, दुनिया खराब। 
कहियो केलियै की अपना, करम के हिसाब?

बालपन   पर   नजर,   अहाँ   देबय  अगर।
दोष   अपने   देखायत,   एम्हर   या  उम्हर।
प्रश्न  उठत  जे  मन  मे, नहि  भेटत  जवाब।
कियै कानय -----

अछि  अहाँ  केँ  वहम, केलहुँ  नीक्के करम।
बिन  स्वारथ  जे  केलहुँ, बस  ओतबे  धरम।
लोक   होशगर  जे   हुनका,  हजारों  दबाव।
कियै कानय -----

सब करय छथि मनन, सभक चाहत छै धन। 
दिन   बदलल   सभक,  छथि  गरीबे  सुमन।
के  रहल  अछि  दुनिया  मे, सब दिन नवाब?
कियै कानय -----