Wednesday, October 10, 2012

अप्पन अप्पन - देखू दर्पण

गजानन बाबूक दरवाजा पर साँझक समय आय पुनः चौपाल सजल छल। गामक लोक सब अपना अपना काज सँ निवृत भऽ सब दिनक भाँति चौपाल मे आबि बैसल रहथि। आय गजानन बाबू समाज मे व्याप्त भ्रष्टाचार आ अन्य बुराई पर चिन्तित रहथि। भ्रष्टाचार सँ सम्पूर्ण देश मे हहाकार मचल अछि। अखबार, रेडियो, टेलीवीजन जतऽ देखू ततऽ भ्रष्टाचार सम्बन्धी खिस्सा? की भऽ रहल छैक समाज आ देश मे। जिनका देखू वो भ्रष्टाचार पर व्याख्यान दऽ रहल छथि सँगहि ओकर निदानक उपाय सेहो सुझा रहल छथि अपना अपना हिसाबें। किनको ज्ञान किनको सँ कम रहन्हि तखन ने? पंचायत सँ दिल्ली धरि जिनका अवसर छन्हि, लूटय मे लागल छथि। पहिने सामाजिक व्यवस्थाक कारणे लोक केँ चोरि, छिनरपन सँ लाज आ डर लागैत छलय। परन्तु आब? आब तऽ ई हमर समाजक व्यवस्थाक एक अभिन्न अंग बनि गेल अछि सँगहिं टाका सँ प्रतिष्ठा सेहो भेटैत अछि।

गजानन बाबू ग्रामवासी केँ सम्बोधित करैत बजलाह - अपने सब कनेटा ई बताऊ जे पुलिस हो वा नेता, कलर्क हो वा कलक्टर ई सब तऽ हमरा समाजेक लोक होइत छथि कि नहि? आय जे किछु गड़बड़ भ्रऽ रहल अछि देश वा समाज मे ताहि मे हिनके भूमिका प्रत्यक्षतः देखवा मे आबि रहल अछि। एना कियैक भेल? आ कोना भेल? विचारणीय अछि। हमरा याद आबैत अछि बहुत पुरनका बात। अपने गाम मे एक छलाह सुक्कन बाबू जिनक प्रयास सँ आय अपना गाम मे हाइ स्कूल, डिस्पेन्सरी, खादी-ग्रामोद्योग केन्द्र आदि चलि रहल अछि। गामक लोकक उपकार भऽ रहल छैक। मुदा सुक्कन बाबू केँ अपना जीबैत कहियो लोक मोजरे नहि देलखिन्ह। जानय छी कियैक? कियैक तऽ सुक्कन बाबू अपना जिनगीक शुरूआती दिन मे ताहि दिनक सामाजिक व्यवस्थाक विपरीत वर्जित काज केने रहथि टाका कमाबय खातिर। सुनबा मे तऽ इहो आबैत अछि जे वो बगरो केँ जाल मे फँसा कऽ फलक कहिकय बेचैत रहथि। खैर--- हमर अभिप्राय ई कखनो नहि जे एक दिवंगत आत्माक निन्दा करी। ओहिनहियो हुनका सनक "युग-पुरुष" आब कतय? हमर अभिप्राय छल जे पहिलुका दिन मे अहाँ टाका सँ कतबो मजबूत भऽ जाऊ मुदा सामाजिक वर्जनाक अतिक्रमण केला पर अहाँ केँ समाज मे जिनगी भरि मान्यता नहि भेटत। ई डर सामाजिक व्यवस्था केँ ईमानदार बनेने छल। मुदा आब ई डर सभहक मोन सँ निपत्ता भऽ गेल अछि जे कारण अछि समाज मे आजुक सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचारक।

किछु देर चिन्तनक पश्चात गजानन बाबू अप्पन एक संस्मरण केँ याद करैत बजलाह - पिताजीक मृत्युक पश्चात हमरा मैट्रिकक परीक्षाक बादे मात्र सवा सोलह सालक उमरि मे गाम सँ रोजगारक लेल बाहर जाऽ पड़ल। पहिल बेर गाम सँ बाहर जेबाक कारणे आ गरीबीक डर सँ हम खूब कनैत छलहुँ। गामक बाहर होइते सीताराम कक्का भेटलाह। हुनका प्रणाम केलहुँ तऽ वो आशीर्वादक पश्चात कहलन्हि जे बेटा अहाँ कनय छी कियैक? खूब हूब सँ जाऊ। नौकरी भेटबे करत। बस एकटा बातक ध्यान राखब जे "जीभ" आ "आचरण" पर सब दिन नियंत्रण राखब। अहाँ सब दिन सुख करब। गजानन बाबू बातक क्रम केँ आगाँ बढ़ाबैत बजलाह - हमरा सचमुच जिनगी मे कतेक बेर एहेन प्रलोभन सेहो भेटल। लेकिन सब बेर हमरा एहेन बुझना गेल जे सीताराम कक्का अप्पन पुरनका बात हमरा सोझाँ मे दोहरा रहल छथि आ हमर डेग सीमा रेखा सँ आगाँ नहि बढ़ि सकल।

गजानन बाबू पुनि बजलाह - नौकरीक करीब पंद्रह बरस बादक एक घटना याद आबैत अछि। एक बुजुर्ग व्यक्ति हमरा सँ पुछलन्हि - की हौ गजानन नौकरी करय छऽ? हमर जवाब - जी हाँ। हुनक प्रतिप्रश्न - "ऊपरी कमाय" कत्तेक होय छऽ? हम्मर जवाब - किछुओ नहि। पुनः हुनक निर्मम प्रतिक्रिया - तखन की खाक नौकरी करय छ? ई जवाब सुनितहिं हम अबाक भऽ गेलहुँ। गजानन बाबू बजलाह - देखू एक्के गाम, लोको ओहने मुदा विचारक स्तर पर कतेक परिवर्तन भऽ गेल? कहबाक तात्पर्य जे कोनो बुराई वा भ्रष्टाचारक प्रशिक्षण तऽ किनको सामाजे मे भेटय छै कि नहि? भ्रष्टाचार मे लिप्त तथाकथित लोक केँ गरियेने सँ किछुओ फायदा नहि? वरन् हमरा सब केँ अप्पन अप्पन भीतर मे देखऽ पड़तय ईमानदारी सँ जे हम कतेक ईमानदार छी आ हम अपना अगिला पीढ़ी केँ की प्रशिक्षित कऽ रहल छी। रोज एक बेर अप्पन अप्पन अन्तर्मनक दर्पण देखबाक जरूरत अछि सब गोटय केँ। नहि तऽ ई सामूहिक सामाजिक सांस्कृतिक अवनयनक युग सँ बाँचब मुश्किल। 

No comments:

Post a Comment