दिन राति जतऽ देखू ततऽ जाने अनजाने प्रायः सब कियो अप्पन अप्पन विशिष्टता (अहंकार सेहो कहि सकय छी) स्थपित करय मे लागल रहय छथि। बस अवसर भेटबाक चाही। एक महिला मित्र (या मित्राणी जे कही) सँ बातचीत होइत छल। अप्पन विशिष्टताक बोध करबैत बजलीह - हम एहि कारणे अमुक संस्था छोड़ि देलहुँ, अमुक कारणे अमुक संगठन। हमरा कनियो टा अनर्गल बात बर्दाश्त नहि होइत अछि आदि आदि ---। कने देरक बाद पुनः शुरू भेलीह हम चाय छोड़ि देलहुँ, हमरा आब भोजनो सँ ओतेक अनुराग नहि। यानि जेहेन प्रसंग आ परिवेश तेहने अप्पन विशिष्टता पर हुनक वक्तव्य। हमहुँ कतेक सुनितहुँ? एकाएक मुँह सँ निकलल - मित्र अहाँ बिल्कुल ठीक कऽ रहल छी। भने धीरे धीरे सब किछु छोड़य केर आदत बना रहल छी। एक दिन तऽ ई देह आ दुनिया सेहो छूड़ैये पड़त ने। नीक अछि छोड़बाक पूर्वाभ्यास भऽ रहल अछि। हमर महिला मित्र लजाऽ गेलीह।
जीवन जीयब एक धर्म छी। आ धर्म की? विद्वान लोकक मुँह सँ सुनने छी जे "यः धारयति स धर्मः"। अर्थात् धर्म धारण करबाक नाम थीक, नहि की छोड़य वा पलायन केर। जिनगी सँ हम सब कियो रोजे रोज टकराबय छी तखन "जीवन-धर्मक" पालन सम्भव भऽ रहल अछि आ हम सब अपना अपना ढंगे जीबि रहल छी। बहुतो बेर इहो सुनने छी चौरासी लाख योनि भ्रमणक पश्चात मानव जीवन भेटैत अछि। आब अहीं सब कहय जाऊ जे एतेक कठिन सँ मानव-जीवन भेटल तखनहुँ यदि जीवन-धर्मक पालन नहि केलहुँ तऽ की केलहुँ?
प्रायः हम सब कम सँ कम एक पत्नी सहित धिया-पुता, भाय-बहिन, माता-पिताक सँगे एक्के घर मे रहय छी। कम या बेसी आपस मे खटपट होइते रहय छैक। तऽ की हम अप्पन परिजन केँ छोड़ि दैत छी? बहुमतक जवाब भेटत नहि। मुदा जे छोड़ि दैत छथि हुनका समाज मे नीक स्थान कहियो भेटय छै की? बिल्कुल नहि। भबिष्यो मे एहने स्थिति शाश्वत काल तक रहत, ई हम सब उम्मीद कऽ सकैत छी। कारण समाज शास्त्रक हिसाबें मनुक्ख केँ एक सामाजिक जानवर कहल गेल अछि। अप्पन गज़लक ई पाँति याद आबि गेल -
भेट जाय भगवान किंचित्, की भेटत इन्सान यौ
मुँह सँ जे लोक अप्पन, मोन सँ बेईमान यौ
ईमानदारीपूर्वक कहऽ चाहैत छी जे खूब विचार केलाक बाद हम अपना बारे मे कहि सकैत छी जे आयधरि हमहुँ "इन्सान" नहि भऽ सकलहुँ। बस पैघ लोकक बनाओल रस्ता पर चलबाक प्रयास भरि कऽ रहल छी। मोन मे अछि यथासम्भव "जीवन-धर्मक" निर्वाह करी। ताहि हेतु कोनो चीज छोड़य सँ बेसी धारण करवाक प्रवृत्ति अछि।
हम खूब मोन सँ पान खाय छी। जीवनक शुरुआती दिन कहियो पानक डाली मे सुपारी नहि तऽ कहियो पानक पात मुरझायल। दिक्कत होमय लागल तऽ प्रयास कऽ सुमन जी (पत्नी) केँ पान खेनाय सिखेलहुँ। आब हमरा सँ बेसी हुनके बेगरता रहैत छन्हि। हमर दिक्कत खतम। किछु दिन पूर्व एहि "पान-प्रेमक" प्रभाव सँ दाँतक डाक्टर लग जाऽ पड़ल। डाक्टर साहेब सलाह देलथि जे अहाँ पान छोड़ि दियऽ। हमरा मुँह पर मुस्कान देखि डाक्टर साहेब पुनि बाजि उठलाह हँसलहुँ कियैक? हम बजलहुँ - डाक्टरक सलाह तऽ मानब हमर मजबूरी अछि ने? नहि तऽ ----। डाक्टर साहेब बजलाह - नहि तऽ की विचार अछि? हम बजलहुँ - यदि हम्मर विचारक बात होय तऽ हम पान आ प्राण एक्के सँग छोड़ब। डाक्टर साहेब हँसय लगलाह।
जीवन जीयब एक धर्म छी। आ धर्म की? विद्वान लोकक मुँह सँ सुनने छी जे "यः धारयति स धर्मः"। अर्थात् धर्म धारण करबाक नाम थीक, नहि की छोड़य वा पलायन केर। जिनगी सँ हम सब कियो रोजे रोज टकराबय छी तखन "जीवन-धर्मक" पालन सम्भव भऽ रहल अछि आ हम सब अपना अपना ढंगे जीबि रहल छी। बहुतो बेर इहो सुनने छी चौरासी लाख योनि भ्रमणक पश्चात मानव जीवन भेटैत अछि। आब अहीं सब कहय जाऊ जे एतेक कठिन सँ मानव-जीवन भेटल तखनहुँ यदि जीवन-धर्मक पालन नहि केलहुँ तऽ की केलहुँ?
प्रायः हम सब कम सँ कम एक पत्नी सहित धिया-पुता, भाय-बहिन, माता-पिताक सँगे एक्के घर मे रहय छी। कम या बेसी आपस मे खटपट होइते रहय छैक। तऽ की हम अप्पन परिजन केँ छोड़ि दैत छी? बहुमतक जवाब भेटत नहि। मुदा जे छोड़ि दैत छथि हुनका समाज मे नीक स्थान कहियो भेटय छै की? बिल्कुल नहि। भबिष्यो मे एहने स्थिति शाश्वत काल तक रहत, ई हम सब उम्मीद कऽ सकैत छी। कारण समाज शास्त्रक हिसाबें मनुक्ख केँ एक सामाजिक जानवर कहल गेल अछि। अप्पन गज़लक ई पाँति याद आबि गेल -
भेट जाय भगवान किंचित्, की भेटत इन्सान यौ
मुँह सँ जे लोक अप्पन, मोन सँ बेईमान यौ
ईमानदारीपूर्वक कहऽ चाहैत छी जे खूब विचार केलाक बाद हम अपना बारे मे कहि सकैत छी जे आयधरि हमहुँ "इन्सान" नहि भऽ सकलहुँ। बस पैघ लोकक बनाओल रस्ता पर चलबाक प्रयास भरि कऽ रहल छी। मोन मे अछि यथासम्भव "जीवन-धर्मक" निर्वाह करी। ताहि हेतु कोनो चीज छोड़य सँ बेसी धारण करवाक प्रवृत्ति अछि।
हम खूब मोन सँ पान खाय छी। जीवनक शुरुआती दिन कहियो पानक डाली मे सुपारी नहि तऽ कहियो पानक पात मुरझायल। दिक्कत होमय लागल तऽ प्रयास कऽ सुमन जी (पत्नी) केँ पान खेनाय सिखेलहुँ। आब हमरा सँ बेसी हुनके बेगरता रहैत छन्हि। हमर दिक्कत खतम। किछु दिन पूर्व एहि "पान-प्रेमक" प्रभाव सँ दाँतक डाक्टर लग जाऽ पड़ल। डाक्टर साहेब सलाह देलथि जे अहाँ पान छोड़ि दियऽ। हमरा मुँह पर मुस्कान देखि डाक्टर साहेब पुनि बाजि उठलाह हँसलहुँ कियैक? हम बजलहुँ - डाक्टरक सलाह तऽ मानब हमर मजबूरी अछि ने? नहि तऽ ----। डाक्टर साहेब बजलाह - नहि तऽ की विचार अछि? हम बजलहुँ - यदि हम्मर विचारक बात होय तऽ हम पान आ प्राण एक्के सँग छोड़ब। डाक्टर साहेब हँसय लगलाह।
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