Monday, November 18, 2024

सन्तान अछि अलोपित

सूरत  देखय  छी  जखने, मुस्कान  अछि अलोपित 
सोझाँ पड़ल जौं कनिया, सब ज्ञान अछि अलोपित

बनलय  महल  सनक  सब,  पूजाक  घर  देखियौ 
भीड़ो  बहुत  बढ़ल  पर, भगवान  अछि अलोपित

सुविधा  घटेलौं  हम  सब, धिया - पुताक  खातिर 
अंतिम समय  मे लोकक, सन्तान अछि अलोपित 

नवका  समय  के  घर मे, कमरा सभक अलग छै 
पाहुन के  घर  बनल छै, मेहमान अछि अलोपित

पैघक  नजरि  मे रहिकय, बच्चा बनत समाजिक
लेकिन  सुमन समय पर, दरबान अछि अलोपित 

साँस चलैया बस जीबय छी

हम जिनगी सँ तखन सिखय छी
दुख  के  जहर  जखन पीबय छी

जोड़य   छी  हर  साल  उमर केँ
साँस  चलैया,  बस  जीबय  छी 

आँगुर  थामि  चलेलहुँ जिनका 
हुनके  पाछां  आब  चलय  छी 

अलग  सोच  सब नवतुरिया के 
व्यर्थे  ओकरा  पर बिदकय छी 

प्रेम   परस्पर   हो  परिजन  मे 
ओहने  पथ  केँ  हम  चुनय छी 

की  सम्भव सब मोन मुताबिक 
हम  तैयो  नहि  माथ धुनय छी 

सुमन हाल सब बूझि सूझिकय 
समुचित  रस्ता हम बदलय छी

घर-घर सामा-गीत

देव दिवाली, गुरु पूर्णिमा, आजुक दिन अछि मीत। 
पर मिथिला मे गाओल जायत, घर-घर सामा-गीत।
एखनधरि बाँचल अछि सब रीत।।

खजन चिड़ैया, सतभैयां छै, माटिक घोड़ा - हाथी। 
दीया - बाती, कजरौटी सँग, झाँझी कुक्कुर साथी। 
चुगला के हर चुगलपनी पर, भाय - बहिन के जीत।
एखनधरि बाँचल -----

सामा आओर चकेबा के सँग, भरिया सेहो जायत। 
बिनरावन मे आगि लगय तऽ, भैया आबि बुझायत।
भैया ठाढ़ बहिन लय चाहे, हाल जेहेन विपरीत। 
एखनधरि बाँचल -----

गीत-नाद सामा के देखियौ, जे किछु सुमन निशानी।
कृष्ण-वंश सँ अहि पाबनि के, सबटा जुड़ल कहानी।
भाय-बहिन केर शुद्ध प्रेम के, अहि मे छुपल अतीत।
एखनधरि बाँचल -----

Sunday, November 10, 2024

करम के हिसाब

कियै  कानय  छी बाजय छी, दुनिया खराब। 
कहियो केलियै की अपना, करम के हिसाब?

बालपन   पर   नजर,   अहाँ   देबय  अगर।
दोष   अपने   देखायत,   एम्हर   या  उम्हर।
प्रश्न  उठत  जे  मन  मे, नहि  भेटत  जवाब।
कियै कानय -----

अछि  अहाँ  केँ  वहम, केलहुँ  नीक्के करम।
बिन  स्वारथ  जे  केलहुँ, बस  ओतबे  धरम।
लोक   होशगर  जे   हुनका,  हजारों  दबाव।
कियै कानय -----

सब करय छथि मनन, सभक चाहत छै धन। 
दिन   बदलल   सभक,  छथि  गरीबे  सुमन।
के  रहल  अछि  दुनिया  मे, सब दिन नवाब?
कियै कानय -----

सुगना! मिथिला बनल विदेश

सुगना! मिथिला बनल विदेश।
संस्कार सब  छूटल  पहिने, देखियौ घर - घर क्लेश।
सुगना! मिथिला बनल -----

भेटत  सगरो  एहि  धरती  पर, मिथिला  केर संतान।
जतय रहय छथि सतत करय छथि, परम्परा-सम्मान।
मुदा बुझायत  मूल  जगह  पर, आबि  गेलहुँ  परदेश।
सुगना! मिथिला बनल -----

मिथिला सँ बाहर मैथिल केर, बढ़ल खूब आयोजन।
आन लोक अचरज सँ देखथि, मैथिल केर संयोजन।
अपना  घर  मे   कम  सहयोगी,  जायत  की  संदेश?
सुगना! मिथिला बनल -----

आबैत रहियो जन्मभूमि पर, अनुभव अपन सुनाबू। 
लोकक अनुभव सुनु  गौर  सँ, थपड़ी तखन बजाबू।
तखने  लागत  सुमन अहाँ केँ, मिथिला अप्पन देश।
सुगना! मिथिला बनल -----

अनेरो गिरगिट अछि बदनाम

हमर  बदलि गेल रंग - ढंग सब, बदलल मिथिला-धाम।
सियाराम  सँ   छाँटि   सिया  केँ,  बाजय  छी  श्री राम।
अनेरो गिरगिट अछि बदनाम।।

भारत के  छः टा दर्शन  मे, चारि  लिखायल मिथिला मे। 
तंत्र - मंत्र  आध्यात्मक नगरी, कोना हेरायल मिथिला मे?
दिल्ली - पटना  सब दिन  ठगलक, भोगय छी परिणाम। 
अनेरो गिरगिट -----

जे  किछु विद्यालय  सरकरी, हालत  बिल्कुल खस्ता छै। 
हरेक साल  हम  बाढ़ि मे डूबी, लोकक जीवन सस्ता छै।
लोक - जागरण  सँ  शासन   पर,  संभव  लगय  लगाम।
अनेरो गिरगिट -----

हर कारण के करू निवारण, कियै बिसरलहुँ मूल कतय?
जौं सचेत छी सुमन जगत मे, देखियौ अप्पन भूल कतय?
राम - राज्य लय राम  सँ  पहिने,  जोड़ब  सिया के नाम। 
अनेरो गिरगिट -----

Friday, November 8, 2024

हम्मर कक्का

बहुत वियापक हम्मर कक्का
करता बकबक हम्मर कक्का

बोली हुनकर बहुत कड़ा पर
कपड़ा झकझक हम्मर कक्का 

काज करय छथि सबटा लेकिन 
करथि अचानक हम्मर कक्का 

रोज अनेरो वो चिकरय छथि 
लगय भयानक हम्मर कक्का 

सतत नारियल बनि जीवथि जे
वो अभिभावक हम्मर कक्का 

मोने मोन सिखय छथि सब सँ 
छथि गुण-ग्राहक हम्मर कक्का 

सुमन जरूरत नीक लोक के  
सचमुच नायक हम्मर कक्का 

बड़ विचित्र अछि

हमर मित्र अछि 
बड़ विचित्र अछि

मानव - मूल्यक 
वो चरित्र अछि 

शायद हमरे 
तेल-चित्र अछि 

देवदूत सन
वो पवित्र अछि 

दुनिया खातिर 
सुमन-इत्र अछि 

हम छी मरचाय अहाँ अंगूर

जहिया सँ पहिरब हमर सेनूर।
ओतबे करब जे कहबय हुजूर।।

चाहे जत्तेक हँसत समाज, कियै करब हम किनको लाज। 
अहाँक  इच्छा  सँ  करबय, घर - बाहर  केर सबटा काज।
सब दिन भेटत सुख भरपूर। 
ओतबे करब जे  -----

राखब सदिखन अहाँक ध्यान, सब दिन सेवा एक समान। 
पढ़ल - लिखल तऽ छी हमहुँ, मुदा अलोपित सबटा ज्ञान। 
अहाँ जूही चम्पा हम छी खजूर। 
ओतबे करब जे -----

आपस मे कोमल व्यवहार, सुखमय जीवन के आधार। 
अहाँ खुशी जौं  हमरा सँ, होयत सुमन  पर ई उपकार।
हम छी मरचाय अहाँ अंगूर। 
ओतबे करब जे  -----

Thursday, April 4, 2024

अहि दुनिया के काज की?

जिनका सँ छल खूब अपेक्षा,
अक्सर भेटल ओतऽ उपेक्षा,
सभहक सँग एहने किछु होय छै, सत्य बजय मे लाज की?
जौं दुनिया एहने बनि जायत, अहि दुनिया के काज की??

संत, मुनि, ग्रंथक भाषा मे, प्रेम बहुत अनमोल छै। 
लेकिन लोकक बात सुनु तऽ, विषधर सन के बोल छै। 
प्रेम आपसी जगबय खातिर, देब पुनः आवाज की?
जौं दुनिया एहने -----

आस पास मे एक दोसर के, उड़बय सब उपहास एखन।
सब सँ बेसी संकट मे अछि, आपस के विश्वास एखन। 
शिक्षा के सँग बढ़लय कटुता, अछि भीतर मे राज की?
जौं दुनिया एहने -----

नर नारी के मिलन के कारण, जन्म सुमन भेल धरती पर।
बिता रहल छी हम सब जीवन, हरित धरा के परती पर।
मधुर प्रेम केँ छोड़ि परस्पर, ताकि रहल छी प्याज की?
जौं दुनिया एहने -----

पेटक कारण गाम छुटि गेल

खटगर कखनहुँ मीठगर बोली
मुदा लगत नहि तीतगर बोली
परिजन पर अधिकार प्रेमवश 
बजैत  रहय छी दीदगर बोली

          पैघ छोट सब केँ मकान छै 
          सोच जेहेन तेहने दुकान छै
          बेसी  लोक भेटत एहने जे 
         अपने  सँ घोषित  महान छै 

पेटक  कारण  गाम छुटि गेल
लीची, जामुन,आम छुटि गेल 
जुड़लहुँ साहित्यिक - सेवा सँ 
मगर  पुरनका नाम छुटि गेल

          बैसल - बैसल भकसय लोक 
          काज देखिकय घसकय लोक 
          नीक   बात  केर  चर्चा  कम्मे  
          कान मे फुसिये फुसकय लोक 

उचित  बात जौं ठीक लगैया 
बिल्कुल न्याय प्रतीक लगैया
जे अधलाह, लोक  छी हमरे 
बात  सुमन केर नीक लगैया 

रंगीला होरी फागुन मे

यमुना - तट  पर  कृष्ण  कन्हाई, सरयू - तट रघुराई। 
सभहक अप्पन प्रीतम के सँग, जागि उठल तरुणाई। 
कोयल मीठगर तान सुनाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

खुशहाली  घर - घर  मे  पसरल, सभहक मोन मतंगे।
जोश भरल  पर होश बिना किछु, घूमि रहल अधनंगे।
साजन - सजनी  रंग खेलाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

ताल - तलैया,  जंगल - झाड़ी, सगरो  भरल   जवानी। 
जेम्हरे   ताकब   तेम्हरे   भेटत,  नूतन -  प्रेम   कहानी।
फागुन मदन केँ रग-रग जगाबय,रंगीला होरी फागुन मे।।

रहथि  कतहु  मिथिलावासी  पर, खूब  मनाबथि  होरी। 
फगुआ खेलय  सब ताकय छथि, अप्पन अप्पन जोड़ी।
कहिया सुमन केँ अंक लगाबय, रंगीला होरी फागुन मे।।

पहलवान सब चढ़ल अखाड़ा

सोचू! किनका देबय वोट?
पहलवान सब चढ़ल अखाड़ा, कसिकय अपन लंगोट।।
सोचू! किनका -----

सब अपना केँ नीक कहय छथि, माँगथि अपन सपोर्ट।
बाजथि  सब  कियो  वो  गरीब  केँ, करता खूब प्रमोट।
सोचू! किनका -----

लोभ  बढ़ाबथि  लोक - वेद मे, बाँटि  बाँटिकय नोट।
एखन फँसब तऽ पाँच बरस तक, भेटत सिर्फ कचोट।।
सोचू! किनका -----

मदिरा, माछक सँग मे देखियौ, बँटा रहल अखरोट।
चौवनिया  मुस्की  सँ झाँपथि, अपना मोनक खोट।।
सोचू! किनका -----

हाथ जोड़िकय सब कियो औता, भाषण मे विस्फोट।
बूझि  सूझिकय  सुमन  अहाँ सब, करू वोट सँ चोट।।
सोचू! किनका -----

Wednesday, January 17, 2024

हमरा नहि भेटल भगवान

पंडित, ज्ञानी जहिना कहलन्हिं, तहिना केलहुँ पूजा ध्यान। 
आन  लोक  केँ  भेटल हेतन्हिं, हमरा नहि भेटल भगवान।।

धर्म-स्थल मे सगरो हलचल, देखल बहुतो आँखि मे छलछल।
जे छथि धर्मक बनल मुर्जना, रोज देखाबथि अप्पन छलबल।
भेद कियै ई जगत-पिता अछि, हम सब अपनहिं के सन्तान??
आन लोक केँ -----

कतेक  बेर  ई  सुनल दुबारा, छथि सभहक भगवान सहारा।
घर - घर  मे  पूजन  भगवन  के, तैयो  दुख  मे लोक बेचारा।
परम-पिता ई कोना   देखय छी, पिता-धर्म के नित अपमान??
आन लोक केँ -----

ज्ञान - बुद्धि - सत्काम अहाँ छी, जीवन-पूर्णविराम अहाँ छी।
दुखी  सुमन  के आस अहीं पर, निर्बल के बलराम अहाँ छी।
हे परमेश्वर कहुना करियौ, सभहक सुख - दुख एक समान??
आन लोक केँ -----