Saturday, February 22, 2025

घून लगत परिवार मे

मोल सभक नित बढ़तय घटतय,
दूर  भेल   से  आबिकय सटतय,
एक   धर्म  मानवता  सभहक, जीबय  लय  संसार  मे।
मुदा  एखन  पाखण्डी  लोकक, चलती  छै  व्यवहार मे।।

पहिल तीर्थ परिवार हमर छी, जहिठां सभहक आदर हो।
जत्तेक  सम्भव   बूढ़ - पुरानक,  इच्छा   पूरित सादर हो।
बूढ़  लोक  जौं   दुखी   रहत  तऽ, घून लगत परिवार मे।।
मुदा एखन -----

गलती सब सँ हेबे करतय, बुझाऽ - सुझाऽ के माफ करू।
नेना - भुटका  के  भविष्य लय, रस्ता अगिला साफ करू।
सजग - लोक   केँ  भेटय  हरदम,  मजबूती  आधार   मे।।
मुदा एखन -----

धर्म - कर्म सँ जुड़ल रहू पर, जग-जीवन केर ध्यान रहय। 
अप्पन  भाषा, जन्मभूमि  केर, सुमन - हृदय स्थान रहय। 
तखने  टा  सहभागी  बनबय,  जीवन  केर   विस्तार  मे।।
मुदा एखन ----

इज्जत लोक बचायत कोना?

लोक भेटल सगरो बिचकाठी, 
बात सँ चलबय बातक लाठी, 
चालि - चलन  सामूहिक  बदलल, सामाजिक आधार में। 
इज्जत  लोक  बचायत  कोना, एहि  बिगड़ल  संसार  में।।

नेनपन सँ अछि  दोस्त  गरीबी, दूर भेल  जे लोक करीबी। 
लोक-चेतना जगबय खातिर, छूटल कहिया हमर फकीरी?
कहियो काल खुशी मन हम्मर, लिखल छपय अखबार में।
इज्जत लोक -----

मातु-पिता केर अछि मजबूरी, धिया-पुता सँ बढ़लय दूरी।
भटकि रहल वो देश- विदेशो, उचित कहाँ भेटय मजदूरी?
मानव - मूल्य  हेरायल  कत्तय,  सुविधा  केर  व्यापार मे??
इज्जत लोक -----

नीक नौकरी सभक सेहन्ता, बच्चा हो अफसर, अभियंता।
संस्कार अप्पन छूटल  तऽ, नीक सुमन कोना क्यो बनता?
अपन आचरण  केवल  वश मे, किछुओ नहि अधिकार मे।।
इज्जत लोक -----

बस हम छी निर्दोष

हम्मर  गलती  अछि  कहाँ, सब दोसर के दोष।
सब  लागल  साबित करी, बस हम छी निर्दोष।।

आपस  के  व्यवहार  मे, आवश्यक अछि लोच। 
सम्भव  तखने  लोक भी, बुझत  अहाँ के सोच।।

अक्सर  सुनबय  लोक सँ, दुनिया बहुत खराब। 
अपन  बुराई छोड़िकय, राखथि सभक हिसाब।।

लेखन  मे  हम  सब करी, मिथिला के गुणगान।
मिथिला  डूबय  बाढ़ि  मे, साल - साल श्रीमान।।

सत्य   सोझ  मे  ठाढ़ जे, करू ओहि  पर बात। 
सामाजिक सहयोग पर, नहि किनको अवघात।।

छी  मिथिला  सँ  दूर  हम, भोगी नित्य वियोग।
मुदा भाव अछि कऽ सकी, सामाजिक सहयोग।।

प्रायोजित  सम्मान  केँ, बूझथि  जे  निज-भाग।
गाबि  रहल  छथि वो सुमन, नित दरबारी-राग।।

कोना कहब की छोट अहाँ छी?

किनको लेल   कचोट अहाँ छी
कियो कहय अखरोट अहाँ छी

बेसी  लोक बजथि कनिया सँ 
हम  दुबरायल   मोट  अहाँ छी

सब  बुधियार,  पैघ  हमरा  सँ
कोना कहब कि छोट अहाँ छी

चलन  बन्द पर मानय छी हम
दू  हजार   के  नोट  अहाँ  छी 

ध्यान  दियौ  अपना ताकत पर
नेता   खातिर   वोट  अहाँ  छी

महिला कहथि पुरुष सँ अक्सर 
हमर  लाज  के  ओट  अहाँ छी

आब कहय छथि लोक सुमन केँ
बहुत  पुरनका   कोट   अहाँ छी
सादर 
श्यामल सुमन

कर्म करू या बनू बताह

एखन जिनक नहि भेल वियाह, बाजथि जिनगी भेल सियाह।
मुदा वियाहल लोक बजय छथि, जिनगी जीयब लगय अथाह। 
एखन जिनक -----

बरतूहार सब आबय छै, वर कमौआ ताकय छै।
पढ़ल - लिखल मेहनतिया बच्चा, अप्पन जोर लगाबय छै।
तैयो कोनो काज भेटय नहि, धिया-पुता के कोन गुनाह। 
एखन जिनक -----

नव - किलकारी आँगन मे, सब लागल छथि अन-धन मे।
बच्चाक नीक भविष्य बनय, संकल्पित अपना मन मे।
लोक सजग जे रोज बनय छथि, अपने कर्मक स्वयं गवाह।
एखन जिनक -----

जीवन ईश्वर के अवदान, किनकर रहलय एक समान?
बूझि - सूझि संघर्ष करत जे, जीवन हुनक बनत वरदान।
कर्मभूमि छी अप्पन धरती, कर्म करू या बनू बताह।
एखन जिनक -----