Thursday, March 15, 2012

व्यर्थक बात करय छी

अहाँ, व्यर्थक बात करय छी
सब दिन कहलहुँ, अहीं लऽ मरय छी।
अहाँ, व्यर्थक बात करय छी


आस लगेलहुँ, रूप सजेलहुँ, 
तखनहुँ साजन अहाँ नहि एलहुँ।
काज करय में दिन कटैया, 
कुहरि कुहरिकय राति बितेलहुँ।
पेटक कारण, अहाँ बिनु साजन, 
जहिना तहिना रहय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----

सब सखियन के साजन आयल, 
सभहक घर मे बाजय पायल।
हँसी मुँह पर ओढ़ि लेने छी, 
लेकिन भीतर सँ छी घायल।
विरहन के दुख, लोक बुझत की, 
तरे तर जरय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----

पीड़ा मन के, बिनु बन्धन के, 
ककरा कहबय दुख जीवन के।
मजबूरी तऽ सब दिन रहतय, 
ताकू अवसर सुमन मिलन के।
आँखिक नोर सूखल पर भीतर, 
नोरक संग बहय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----

3 comments:

  1. श्यामल
    आशीर्वाद

    प्रणय और बिछोह की पीड़ा का वर्णन
    गीत को गा कर भेजिये (धन्यवाद )

    गीत कविता बार बार पढ़ी
    यही समझ आई

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  2. इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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