अहाँ, व्यर्थक बात करय छी।
सब दिन कहलहुँ, अहीं लऽ मरय छी।
अहाँ, व्यर्थक बात करय छी।।
आस लगेलहुँ, रूप सजेलहुँ,
सब दिन कहलहुँ, अहीं लऽ मरय छी।
अहाँ, व्यर्थक बात करय छी।।
आस लगेलहुँ, रूप सजेलहुँ,
तखनहुँ साजन अहाँ नहि एलहुँ।
काज करय में दिन कटैया,
काज करय में दिन कटैया,
कुहरि कुहरिकय राति बितेलहुँ।
पेटक कारण, अहाँ बिनु साजन,
पेटक कारण, अहाँ बिनु साजन,
जहिना तहिना रहय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----
सब सखियन के साजन आयल,
अहाँ, व्यर्थक -----
सब सखियन के साजन आयल,
सभहक घर मे बाजय पायल।
हँसी मुँह पर ओढ़ि लेने छी,
हँसी मुँह पर ओढ़ि लेने छी,
लेकिन भीतर सँ छी घायल।
विरहन के दुख, लोक बुझत की,
विरहन के दुख, लोक बुझत की,
तरे तर जरय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----
पीड़ा मन के, बिनु बन्धन के,
अहाँ, व्यर्थक -----
पीड़ा मन के, बिनु बन्धन के,
ककरा कहबय दुख जीवन के।
मजबूरी तऽ सब दिन रहतय,
मजबूरी तऽ सब दिन रहतय,
ताकू अवसर सुमन मिलन के।
आँखिक नोर सूखल पर भीतर,
आँखिक नोर सूखल पर भीतर,
नोरक संग बहय छी।
अहाँ, व्यर्थक -----
अहाँ, व्यर्थक -----
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteश्यामल
ReplyDeleteआशीर्वाद
प्रणय और बिछोह की पीड़ा का वर्णन
गीत को गा कर भेजिये (धन्यवाद )
गीत कविता बार बार पढ़ी
यही समझ आई
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!