कनिये कनिये रोज लिखय छी
छात्र एखन, साहित्य सिखय छी
भारी भरकम बात लिखल नहि
घर-आँगन केर बात कहय छी
बेसी वक्ता, कम श्रोता अछि
कविता सँ सम्वाद करय छी
कहियो नहि मन-दर्पण देखल
बाहर दर्पण रोज देखय छी
छी असगर ई भाव भीड़ मे
बनिकऽ पानी संग बहय छी
एहि जीवन मे दुख ककरा नहि
दुख मे नित मजबूत रहय छी
कियो सुमन के सत्य सुनल नहि
खूब मोन सँ सभक सुनय छी
छात्र एखन, साहित्य सिखय छी
भारी भरकम बात लिखल नहि
घर-आँगन केर बात कहय छी
बेसी वक्ता, कम श्रोता अछि
कविता सँ सम्वाद करय छी
कहियो नहि मन-दर्पण देखल
बाहर दर्पण रोज देखय छी
छी असगर ई भाव भीड़ मे
बनिकऽ पानी संग बहय छी
एहि जीवन मे दुख ककरा नहि
दुख मे नित मजबूत रहय छी
कियो सुमन के सत्य सुनल नहि
खूब मोन सँ सभक सुनय छी
बेसी वक्ता, कम छै श्रोता
ReplyDeleteकविता सँ सम्वाद करय छी
लेछी असगर ई भाव भीड़ मे
बनिकऽ पानी संग बहय छी
क्ख है अधिक या वक्ता है ज्यादा सुनने वाले कम
आन्सूयों है नमकीन भावनाओं में मिठास है
कशम मुझे यही समझ आई
बहुत बेस, तथ्यपरक ।
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