Sunday, November 10, 2024

करम के हिसाब

कियै  कानय  छी बाजय छी, दुनिया खराब। 
कहियो केलियै की अपना, करम के हिसाब?

बालपन   पर   नजर,   अहाँ   देबय  अगर।
दोष   अपने   देखायत,   एम्हर   या  उम्हर।
प्रश्न  उठत  जे  मन  मे, नहि  भेटत  जवाब।
कियै कानय -----

अछि  अहाँ  केँ  वहम, केलहुँ  नीक्के करम।
बिन  स्वारथ  जे  केलहुँ, बस  ओतबे  धरम।
लोक   होशगर  जे   हुनका,  हजारों  दबाव।
कियै कानय -----

सब करय छथि मनन, सभक चाहत छै धन। 
दिन   बदलल   सभक,  छथि  गरीबे  सुमन।
के  रहल  अछि  दुनिया  मे, सब दिन नवाब?
कियै कानय -----

सुगना! मिथिला बनल विदेश

सुगना! मिथिला बनल विदेश।
संस्कार सब  छूटल  पहिने, देखियौ घर - घर क्लेश।
सुगना! मिथिला बनल -----

भेटत  सगरो  एहि  धरती  पर, मिथिला  केर संतान।
जतय रहय छथि सतत करय छथि, परम्परा-सम्मान।
मुदा बुझायत  मूल  जगह  पर, आबि  गेलहुँ  परदेश।
सुगना! मिथिला बनल -----

मिथिला सँ बाहर मैथिल केर, बढ़ल खूब आयोजन।
आन लोक अचरज सँ देखथि, मैथिल केर संयोजन।
अपना  घर  मे   कम  सहयोगी,  जायत  की  संदेश?
सुगना! मिथिला बनल -----

आबैत रहियो जन्मभूमि पर, अनुभव अपन सुनाबू। 
लोकक अनुभव सुनु  गौर  सँ, थपड़ी तखन बजाबू।
तखने  लागत  सुमन अहाँ केँ, मिथिला अप्पन देश।
सुगना! मिथिला बनल -----

अनेरो गिरगिट अछि बदनाम

हमर  बदलि गेल रंग - ढंग सब, बदलल मिथिला-धाम।
सियाराम  सँ   छाँटि   सिया  केँ,  बाजय  छी  श्री राम।
अनेरो गिरगिट अछि बदनाम।।

भारत के  छः टा दर्शन  मे, चारि  लिखायल मिथिला मे। 
तंत्र - मंत्र  आध्यात्मक नगरी, कोना हेरायल मिथिला मे?
दिल्ली - पटना  सब दिन  ठगलक, भोगय छी परिणाम। 
अनेरो गिरगिट -----

जे  किछु विद्यालय  सरकरी, हालत  बिल्कुल खस्ता छै। 
हरेक साल  हम  बाढ़ि मे डूबी, लोकक जीवन सस्ता छै।
लोक - जागरण  सँ  शासन   पर,  संभव  लगय  लगाम।
अनेरो गिरगिट -----

हर कारण के करू निवारण, कियै बिसरलहुँ मूल कतय?
जौं सचेत छी सुमन जगत मे, देखियौ अप्पन भूल कतय?
राम - राज्य लय राम  सँ  पहिने,  जोड़ब  सिया के नाम। 
अनेरो गिरगिट -----

Friday, November 8, 2024

हम्मर कक्का

बहुत वियापक हम्मर कक्का
करता बकबक हम्मर कक्का

बोली हुनकर बहुत कड़ा पर
कपड़ा झकझक हम्मर कक्का 

काज करय छथि सबटा लेकिन 
करथि अचानक हम्मर कक्का 

रोज अनेरो वो चिकरय छथि 
लगय भयानक हम्मर कक्का 

सतत नारियल बनि जीवथि जे
वो अभिभावक हम्मर कक्का 

मोने मोन सिखय छथि सब सँ 
छथि गुण-ग्राहक हम्मर कक्का 

सुमन जरूरत नीक लोक के  
सचमुच नायक हम्मर कक्का 

बड़ विचित्र अछि

हमर मित्र अछि 
बड़ विचित्र अछि

मानव - मूल्यक 
वो चरित्र अछि 

शायद हमरे 
तेल-चित्र अछि 

देवदूत सन
वो पवित्र अछि 

दुनिया खातिर 
सुमन-इत्र अछि 

हम छी मरचाय अहाँ अंगूर

जहिया सँ पहिरब हमर सेनूर।
ओतबे करब जे कहबय हुजूर।।

चाहे जत्तेक हँसत समाज, कियै करब हम किनको लाज। 
अहाँक  इच्छा  सँ  करबय, घर - बाहर  केर सबटा काज।
सब दिन भेटत सुख भरपूर। 
ओतबे करब जे  -----

राखब सदिखन अहाँक ध्यान, सब दिन सेवा एक समान। 
पढ़ल - लिखल तऽ छी हमहुँ, मुदा अलोपित सबटा ज्ञान। 
अहाँ जूही चम्पा हम छी खजूर। 
ओतबे करब जे -----

आपस मे कोमल व्यवहार, सुखमय जीवन के आधार। 
अहाँ खुशी जौं  हमरा सँ, होयत सुमन  पर ई उपकार।
हम छी मरचाय अहाँ अंगूर। 
ओतबे करब जे  -----