कियै कानय छी बाजय छी, दुनिया खराब।
कहियो केलियै की अपना, करम के हिसाब?
बालपन पर नजर, अहाँ देबय अगर।
दोष अपने देखायत, एम्हर या उम्हर।
प्रश्न उठत जे मन मे, नहि भेटत जवाब।
कियै कानय -----
अछि अहाँ केँ वहम, केलहुँ नीक्के करम।
बिन स्वारथ जे केलहुँ, बस ओतबे धरम।
लोक होशगर जे हुनका, हजारों दबाव।
कियै कानय -----
सब करय छथि मनन, सभक चाहत छै धन।
दिन बदलल सभक, छथि गरीबे सुमन।
के रहल अछि दुनिया मे, सब दिन नवाब?
कियै कानय -----
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