Monday, May 7, 2012

कुक्कुर केँ सन्तान बनाबी

व्यर्थ कियै दालान बनाबी
घर केँ तोड़ि मकान बनाबी

टाका अछि तऽ आदर भेटत
द्वारो पर दोकान बनाबी

आगाँ पाछाँ लोक घूमत जौं
सज्जन केँ नादान बनाबी

बच्चा सब केँ हास्टल भेजू
कुक्कुर केँ सन्तान बनाबी

जीवन देलक आस लगाऽ जे
मातु पिता निम्झान बनाबी

सबटा सुख हमरे लग आबय
एहेन कियै अरमान बनाबी

हमहुँ जीबी लोकक संग मे
दुनिया सुमन महान बनाबी

2 comments:

  1. बच्चा सब केँ हास्टल भेजू
    कुक्कुर केँ सन्तान बनाबी

    जीवन देलक आस लगाऽ जे
    मातु पिता निम्झान बनाबी

    कड़वा सच का व्यंग

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  2. बहुत नीक भावपुर्ण आ लयबद्ध रचना ।

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