Friday, May 18, 2012

हाथ पकड़लहुँ जखन सुमन के


मन सुरभित छल आस मिलन के, प्यास नयन मे तृषित नयन के
बाजल हिरदय धक धक धक धक, सुनितहिं धुन पायल छन छन के

दशा पूर्व के पहिल मिलन सँ, कहब कठिन ई सब जानय छी
साल एक, पल एक लगय छल, बढ़ल कुतुहल छन छन मन के

कोना बात शुरू करबय हम, कतेक बेर मन सोचि चुकल छल
भेटल छल हमरा नहि तखनहुँ, समाधान की, एहि उलझन के

बाहर हँसी ठहाका सभहक, सुनैत छलहुँ बस हम कोहबर सँ
चित चंचल मुदा सोचलहुँ बाँचल, चारि दिना एखनहुँ बन्धन के

धीर धरू अपने सँ कहिकय, कहुना अप्पन मोन बुझेलहुँ
वाक-हरण बस आँखि बजय छल, हाथ पकड़लहुँ जखन सुमन के





2 comments:

  1. श्यामल
    आशीर्वाद


    बाहर हँसी ठहाका सभहक, सुनैत छलहुँ बस हम कोहबर सँ
    चित चंचल मुदा सोचलहुँ बाँचल, चारि दिना एखनहुँ बन्धन के

    बहुत ही अद्भुत भावपूर्ण प्रेम विहल गीत
    लिखते रहे साहित्य रत्न की उपाधी पायें

    ReplyDelete
  2. दशा पूर्व के पहिल मिलन सँ, कहब कठिन ई सब जानय छी
    साल एक, पल एक लगय छल, बढ़ल कुतुहल छन छन मन के

    कोना बात शुरू करबय हम, सोचि सोचिकय मन थाकल छल
    भेटल छल हमरा नहि तखनहुँ, समाधान की, एहि उलझन के


    क्या बात है जी!

    ReplyDelete