मैया! कतेक दूर चलि गेलहुँ।?
ओतेक स्नेह सँ कियो ने पूछय, सुमन अहाँ की खेलहुँ??
मैया! कतेक -----
छाया ममता केर आँचर के, याद करैत मन पागल।
देर राति जहिया घर एलहुँ, अहाँ केँ देखलहुँ जागल।
धिया-पुता केर नीकक खातिर, सबकिछु अहाँ लुटेलहुँ।।
मैया! कतेक -----
प्रातःकालक वो स्वर - लहरी, लागय भेल अलोपित।
अक्सर स्नेह एखन जे भेटय, सब लागय आरोपित।
अमिट छाँह जे सहज - स्नेह के, भगवन् दूर करेलहुँ।।
माता! कतेक -----
नीक कामना पहिने लोकक, तकर बाद अपना लय।
ओहने भाव हृदय मे जागय, जीयब ओहि सपना लय।
दूरो छी पर अहींक चरण मे, निशि-दिन ध्यान लगेलहुँ।।
मैया! कतेक -----
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