Wednesday, July 23, 2025

हमरा घर के काते-कात

लोक  खुनय  जे  रोजे खदहा, हमरा घर के काते-कात 
सिर्फ  सुनाबय अप्पन दुखड़ा, हमरा घर के काते-कात 

राति-दिन जे  परनिन्दा  केँ, भजन बूझि केँ गाबि रहल
मनुख-रूप  मे भटकय गदहा, हमरा घर के काते-कात 

नीक  लोक  कम  सरिपहुँ भेटय, बेसी अधलाहे सँ भेंट
घर-घर देखि रहल छी झगड़ा, हमरा घर के काते-कात 

मैथिल - मिथिला  संस्कार के, बाजा बाहर बजबय छी
संस्कार  बूझय  सब  लदहा, हमरा  घर  के काते-कात

जे धरती छल सुमन ज्ञान के, बढ़लय ओहिठां अज्ञानी
सबटा  अज्ञानक  छी लफड़ा, हमरा घर के काते-कात 

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