भूख लगल आबय पड़ल, गाम छोड़ि परदेश।
अखन गाम बनलय शहर, बदलि गेल परिवेश।।
आयोजन कोनो रहय, या कोनो त्योहार।
मोह छुटल नहि गाम के, जायब बारम्बार।
नवतुरिया बेहोश अछि, या शायद डरपोक।
बुझनिहार अग्रज बहुत, छोड़ि देलनि इहलोक।।
नवका लोकक बोल मे, कनियो कहाँ लगाम?
गप्पो किनका सँ करब, जखन जाय छी गाम।।
राग - द्वेष जे आपसी, कारण बस अज्ञान।
ज्ञान हमर पहचान छल, मेटा रहल वो ज्ञान।।
झगड़ा सँ झगड़ा बढ़य, प्रेम बढ़य के मूल।
अपने सँ ताकय पड़त, भेल कतय की भूल??
सिखा देत सबकिछु समय, शिक्षक बहुत सटीक।
सुख -सुविधा बाहर मुदा, गाम सुमन अछि नीक।।
No comments:
Post a Comment