दुनिया! मति-दुर्मति केर खेला।
सगरो नीक - मति सँ मंगल, दुर्मति सिर्फ झमेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----
परम्परा सँ जीबय खातिर, निर्मित नियम चलय के।
मुदा एखन कोना चिन्हब के, कोशिश करत छलय के।
डेग - डेग पर नीति - नियम केर, देखी नित्य अवहेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----
झगड़ा - झंझट जे समाज मे, नियम - भंग के कारण।
नीक-बेजाय बस कर्म हमर छी, किछुओ नहि अकारण।
नेक - सोच केर आदर करबय, लागत जग छी मेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----
नवतुरिया केँ पैघ लोक केर, अनुभव तीत लगैया।
भौतिक - सुख केर पागलपन टा, हुनका मीठ लगैया।
कहुना अप्पन चालि सुधारू, जिनगी सुमन अकेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----
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