Thursday, July 24, 2025

जिनगी सुमन अकेला

दुनिया! मति-दुर्मति केर खेला। 
सगरो  नीक - मति  सँ     मंगल,  दुर्मति   सिर्फ  झमेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----

परम्परा  सँ  जीबय  खातिर, निर्मित  नियम  चलय   के।
मुदा  एखन  कोना  चिन्हब  के, कोशिश करत छलय के।
डेग - डेग  पर  नीति - नियम  केर, देखी  नित्य अवहेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----

झगड़ा - झंझट  जे  समाज  मे, नियम - भंग  के कारण।
नीक-बेजाय बस कर्म हमर छी, किछुओ नहि अकारण।
नेक - सोच  केर  आदर  करबय, लागत  जग  छी मेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----

नवतुरिया  केँ  पैघ  लोक  केर,  अनुभव  तीत  लगैया।
भौतिक - सुख  केर  पागलपन टा, हुनका मीठ लगैया।
कहुना  अप्पन  चालि  सुधारू, जिनगी सुमन अकेला।।
दुनिया! मति-दुर्मति -----

No comments:

Post a Comment