मूल्यवान सब जगत मे, सभहक प्रतिभा खास।
कियै उड़ाबय छी कियो, कमजोरक उपहास।।
पैघ सोच के लोक सब, करय पैघ सन काज।
अछि विचार मे ही छुपल, जीवन के सब राज।।
धन दौलत साधन सदा, बुझियो नहि भगवान।
आजुक निर्धन काल्हि केँ, सम्भव हो धनवान।।
सुखी हुनक जीवन तखन, जौं सम्बन्धक मोल।
सुख दुख मे जे सदरिखन, बाजथि मीठा बोल।।
ग्रन्थ बहुत, गुरुओ बहुत, बाँटि रहल उपदेश।
मुदा आचरण के बिना, नहि बदलत परिवेश।।
नीक बात बिनु आचरण, बाजब छी बेकार।
सुनियो केँ सब नहि सुनत, करैत रहू तकरार।।
बात बुझू वा नहि बुझू, नहि कोनो फरियाद।
प्रश्न सुमन के स्वयं सँ, अपनहि सँ सम्वाद।।
No comments:
Post a Comment