सीता के सँग राम खेलावथि, गौरी सँग त्रिपुरारी।
गोकुल, मथुरा भटकथि राधा, कत्तय कृष्ण मुरारी।
आबू! फाग खेलय गिरिधारी।।
धरती पाटल रंग अबीर सँ, गगनो लाल लगैया।
कोयल के अछि बोल मनोहर, केहेन कमाल लगैया।
हर घर मे आ गली, सड़क पर, तानल अछि पिचकारी।
आबू! फाग -----
अछि उमंग मे बूढ़ लोक सब, हुनक जवानी देखू।
अप्पन प्रियतम के सँग हुनकर, प्रेम कहानी देखू।
राधा के मन बाधा किंचित, फगुआ रहत उधारी।
आबू! फाग -----
अटकन मटकन दहिया चटकन, राधा लगन उचारय।
हो फगुनाहट मिलन सुमन के, मन मे अगन जराबय।
लोक लाजवश चुप छथि राधा, फागुन के दिन भारी।
आबू! फाग -----
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