Sunday, August 21, 2022

फगुआ रहत उधारी

सीता  के  सँग  राम  खेलावथि, गौरी  सँग त्रिपुरारी।
गोकुल, मथुरा  भटकथि  राधा, कत्तय  कृष्ण मुरारी।
आबू! फाग खेलय गिरिधारी।।

धरती  पाटल   रंग - अबीर  सँ,  गगनो  लाल  लगैया।
कोयल  के  अछि  बोल मनोहर, केहेन कमाल लगैया।
हर घर मे आ गली, सड़क पर, तानल अछि पिचकारी।
आबू! फाग -----

अछि  उमंग  मे  बूढ़  लोक सब, हुनक जवानी देखू।
अप्प न प्रियतम  के सँग  हुनकर, प्रेम  कहानी  देखू।
राधा  के  मन  बाधा  किंचित, फगुआ  रहत  उधारी।
आबू! फाग -----

अटकन मटकन दहिया चटकन, राधा लगन उचारय।
हो फगुनाहट मिलन सुमन के, मन मे अगन जराबय।
लोक लाजवश चुप छथि राधा, फागुन के दिन भारी।
आबू! फाग -----

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