किछ पाँति लिखय छी काटय छी
गीत जिनगीक रोज गाबय छी
खेल नेनपन मे जे सीखौने छल
आब हुनके एखन खेलाबय छी
भीड़ तऽ लोक केर भेटल सगरो
ओहि मे लोक अपन ताकय छी
ज्ञान एत्तऽ कहू छै कम किनका
तैयो जबरन हमहुँ सुनाबय छी
नीच कर्मों सँ जे धनिक भेलाऽ
हुनके जयकार हम लगाबय छी
मेल आपस के गेल खटाई मे
तैयो नित हम कलह बढ़ाबय छी
आब कत्तेक दिना सुमन सूतब
आबिकय रोज हम जगाबय छी
No comments:
Post a Comment