परिजन के सँग मिलिकय जीबी, सभहक आछि तैयारी।
देखलहुँ एक्के छत के नीचा, अछि विभेद बड़ भारी।
भैया! सोचू मोने मोन, करियौ जोड़य के जतन।।
स्नेह भेटल बचपन मे तखने, हम सब आगां बढ़लहुँ।
अप्पन क्षमता, प्रतिभा के बल, शिखर अपन सब चढ़लहुँ।
ओ परिजन सब आब लगैया, कियै पैघ दुश्मन?
भैया! सोचू मोने मोन ------
मातु पिता के त्याग समर्पण, कोना दाम चुकायब?
अहाँ के कारण कष्ट जौं हुनका, कत्तय मुँह छुपायब?
बाहर खूब लुटाबी पैसा, भाय, बहिन ठनठन।
भैया! सोचू मोने मोन -----
कलम उठेलहुँ फर्ज बूझिकय, प्रतिदिन लोक जगाबी।
बूझब नहि उपदेश कोनो छी, भोगल सत्य सुनाबी।
घर घर के ई हाल देखिकय, घायल भेल सुमन।
भैया! सोचू मोने मोन -----
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