साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम हृदय केर सुनाबैत छी।।
कहू माता के आँचर मे की सुख भेटल।
चढ़िते कोरा जेना सब हमर दुख मेटल।
आय ममता उपेक्षित कियै राति-दिन?
सोचि कोठी मे मुँह केँ नुकाबैत छी।
साँच जिनगी -----
खूब नेनपन मे खेललहुँ बहिन-भाय संग।
प्रेम सँ भीज जाय छल हरएक अंग-अंग।
कोना सम्बन्ध शोणित केर टूटल एखन?
एक दोसर के शोणित बहाबैत छी।
साँच जिनगी -----
दूर अप्पन कियै अछि पड़ोसी लगीच।
कटत जिनगी सुमन के बगीचे के बीच।
बात घर - घर के छी ई सोचब ध्यान सँ,
स्वयं दर्पण स्वयं केँ देखाबैत छी।
साँच जिनगी -----
बहुत सुंदर प्रस्तुति सच्चाई से कही गयी दिल की बात
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