Friday, June 24, 2011

देख गाम के यार


पेट भरय लऽ की कहू, कहिया छूटल गाम।
साल बहुत बीतल मुदा,  मोन अछि  ओहि ठाम।

बाहर मे अछि हड़बड़ी, मचल चहुँ दिश शोर।
याद करि नेनपन जखन, भरल आँखि मे नोर।।

आमक गाछी दौड़लहुँ, जखने बहल बसात।
आजुक नवतुरिया बनल, फुसियौंका अभिजात।।

चोर-नुकैया भोर मे, गुल्ली-डण्डा साँझ।
सभहक बेटा सब केर, कियो माय नहि बाँझ।।

कोना बिसरब बात वो, भोगल बाढ़ि सुखार।
सुमन भेल गदगद तखन, देख गाम के यार।।

2 comments:

  1. श्यामल जी भाई मजा अगया
    जोरदा लिखा आपने
    बधाई स्वीकारें ..........

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  2. "गाछी दौड़लहुँ आम केर जखने बहल बसात।
    आजुक बच्चा घर मे फुसियौंका अभिजात।।"

    ई पांति पढि हमरो गाम आ गाछी मोन परि गेल.

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