Sunday, June 19, 2011

कहू कि फूसि बजय छी?

गप्पे टा हम नीक करय छी, 
सबटा उनटा काज।
एहि कारण सँ टूटि रहल अछि, 
मैथिल सकल समाज।
कहू कि फूसि बजय छी?

टाका देलहुँ, बेटी देलहुँ, 
केलहुँ कन्यादान।
ओहि टाका सँ फुटल फटाका, 
खेलहुँ पान मखान।
दाता बनल भिखारी देखियो, 
केहेन बनल अछि रीति?
कोना अयाची के बेटा सब, 
माँगि देखाबथि शान।
कहू कि फूसि बजय छी?

माछ-माउस केर मैथिल प्रेमी, 
मचल जगत मे शोर।
घर मे सम्हरि सम्हरि केँ खेता, 
सानि सानि केँ झोर।
बरियाती मे झोर किनारा, 
खाली माउसक बुट्टी,
मिथिला केर व्यवहार कोनाकय, 
बनल एहेन कमजोर?
कहू कि फूसि बजय छी?

नहि सम्हरब तऽ सच मानू, 
भेटत कष्ट अथाह।
जाति-पाति केँ छोड़िकय बेटी, 
करती कतहु वियाह।
तखन सुमन के गोत्र-मूल केर, 
करब कोना पहचान?
बचा सकी तऽ बचाबू मिथिला, 
बनिकय अपन गवाह।
कहू कि फूसि बजय छी?

1 comment:

  1. आंचलिक भाषा में रचने और इसके संरक्षण के लिए आपको बधाई ,आभार .

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