Saturday, June 18, 2011

फगुनाहट

फगुनाहट हवा आबि गेल जोर सँ।
राति-दिन फाग खेलब खेलब भोर सँ।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

साँचे मानू हृदय मे जरय अछि अगन।
अहाँ ओहिठाम पाथर बनल छी मगन।
गाम छोड़लहुँ अहाँ जाहि दिन सँ पिया,
कहाँ देखलहुँ हृदय मे मिलन के लगन।
वन्दना, गाम आबू ने झट सँ उमंग मे।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

रंग खेलब उड़ायब अबीरो गुलाल।
चाँद सूरज गगन करब धरती केँ लाल।
घर मे पकवान पूआ बहुत किछु भेटत,
गीत फगुआ के गायब मचायब धमाल।
चेतना, नव जागत भांगक तरंग मे।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

सुख देख के जहर हम पीबैत छी।
फगुए टा खेलाबय लऽ जीबैत छी।
नहि मिलन भेल तऽ मुरझायत सुमन,
बुझब आकाश फाटि गेल सीबैत छी।
वेदना, के मेटत जे पैसल हर अंग मे।
कल्पना, करू छी प्रीतम के सँग मे।।

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