Tuesday, June 14, 2011

बोध

खाली बाते करब, किछु करबो करू।
जखन बैसल रही, तखन पढ़बो करू।
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

बीतल बचपन अहाँ आब भेलहुँ जवान।
ताश-शतरंज खेलाकऽ नहि तोड़ू मचान।
अवसरक नहि कमी, आँखि खोलु मुदा,
घाम छूटत जखन बनि जायब महान।
भावना, बिनु मोल बिकत बाजार मे
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

कने सोचू जगत मे हमर काज की?
काज केहनो करय मे कहू लाज की?
बोध कर्तव्य के जौं हृदय मे रहत,
गीत जिनगी बनत फेर तखन साज की?
सर्जना, करू नित नूतन व्यापार मे।
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

अहाँ छी बस गवाही अपन कर्म के।
मर्म एहि मे छुपल अछि सभक धर्म के।
बीच काँटक सुमन जेकाँ जीयब सीखू,
कष्ट रहितहुँ हँसब बात नहि शर्म के।
कामना, कटय जीवन बस उपकार मे।
साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे।।

4 comments:

  1. एक बार इसे जरुर पढ़े कॉग्रेस के चार चतुरो की पांच नादानियां | http://www.bharatyogi.net/2011/06/blog-post_15.html

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  2. "साधना, बिनु किछु नञि भेटत संसार मे"
    सच कहलहुं अछि ......बिन साधना किछु नहीं भेंटेय छैक.

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  3. बीतल बचपन अहाँ आब भेलहुँ जवान।
    ताश-शतरंज खेलाकऽ नहि तोड़ू मचान।
    (नीक)
    जीवन का सच

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