Monday, June 27, 2011

साढ़ू

गाम घर मे पहिलका समय मे बेसी कतहु कतहु एखनो एक अलिखित मान्यताक चलन अछि जे यदि एके गाम मे किनको विवाह भऽ गेल तऽ वो आपस मे स्वतः साढ़ू बनि जायत रहथि। एक गाम छोड़ू यदि एक तरफक रास्ता मे सासुर पड़य तखनो साढ़ू। हद तऽ तखन भेल जखन एक ट्रेन सँ सासुर गेनिहार सब एक दोसर कें साढ़ू कहि कय सम्बोधित करैत छथिन्ह।

पहिलुका समय मे गाम घरक लोक हैजा,प्लेग आदि संक्रामक बीमारी केर प्रवेश मात्रक सूचना सँ खूब डराबैत रहथि। समय सेहो कठिन छल। पुरनका लोक सब कहैत रहथिन्ह जे एकटा मुर्दा जराऽ कऽ आबिते आबिते दोसर तैयार। यानि एहि बीमारी मे बहुत लोकक मरनाय आम बात रहय ताहि दिन मे। ओहि पुरनका लोक सभहक मुँहे सुनल ई सत्य घटना आय हम लिखऽ जाऽ रहल छी।

मिथिला मे सहरसा जिलान्तर्गत चैनपुर गाम अछि। गामक लोक खूब शिक्षित, सहज आ विकासोन्मुख सेहो। चैनपुर मे मुख्यरूप सँ दू टा समानान्तर रोड पूरा गामक अगिला छोर तक एकर बिशेषता सेहो अछि। जाहि मे एक रोडक शुरूआत मे कुम्हार जातिक लोक बसल छथि। ताहि सँ सटले पंडित टोला अछि। मिथिला मे एखनो कुम्हार जातिक उपनाम (सरनेम) "पंडित" होईत अछि। बगले मे पंडित टोल जाहि मे मूर्खो आदमी केँ "पडित" कहबाक प्रचलन सेहो अछि। यानि पंडित जी के शुरूआत मे "पंडित" सम्बोधन आ कुम्हार केँ नामक अंतिम मे "पंडित"। खैर--

एक दिनक बात भोरे भोरे एक पंडित जी हाथ मे लोटा लेने बाह्य-भूमि तरफ निकलला। रास्ता मे हुनके उमरि के कुम्हार सड़के पर अपना काज मे मस्त छल।

पंडित (कुम्हार केँ सम्बोधित करैत) - की साढ़ू की हाल चाल?


कुम्हार (आश्चर्य चकित भाव सँ प्रणामक मुद्रा मे) - पंडित जी ई अपने की कहि रहल छिये? अपने ब्राहमण कुल सँ आ हम कुम्हार। तखन फेर हम अहाँ साढ़ू कोना?

पंडित - मूरखे रहि गेलऽ सब दिन?

कुम्हार - से की?

पंडित - सुनऽ। जखन किनको एक गाम मे विवाह होय छै तऽ वो एक दोसर केँ साढ़ू कहय छै कि नहि?

कुम्हार -
हाँ।

पंडित - एक ट्रेन सँ जे सासुर जाय छथि एक दोसर केँ साढ़ू कहय छै कि नहि?

कुम्हार - जी हाँ कहय छै।

पंडित - आब तूहीं बताबऽ हमर कनिया आ तोहर कनिया एके हैजा मे मरलखिन्ह तऽ हम दुनु गोटय साढ़ू भेलिये कि नहि?

6 comments:

  1. ई रफ़्तार सँ कैक टा साढू छथि से तs बुझल अवश्य होयत.....

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  2. बहुत सुन्दर लेख हमे भी आकर प्रोतसाहन देते रहेबहुत सुन्दर लेख हमे भी आकर प्रोतसाहन देते रहे

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  3. बहुत सुंदर..
    गुवाहाटी में एक समाचार पत्र में काम करने के दौरान मेरे एक साथी पी के झा जी साथ रहे। मिथिलांचल के रहने वाले थे। बहुत ही बढिया मैथिल भाषा बोलते थे।
    आज उनकी याद आ रही है।

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  4. श्यामल
    आशीर्वाद
    सुंदर लेख और हास्य भी साडू
    थोड़ी थोड़ी समझ आयी
    धन्यवाद

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  5. प्रयोजन जे हुअए,दुनू वर्गक मेल सामाजिक समरसताक हित मे उचित।

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